हिन्दी में नया क्या लिखा जा रहा है, यह इंटरनेट के युग में भी ढूंढ पाना इतना आसान नहीं नज़र आता। इतनी पर्याप्त जानकारी किसी एक वेबसाइट या पोर्टल पर नहीं मिलती कि उसमें से कुछ विकल्प बनाए जा सकें। यह शिकायत मेरी भी रही है। तो इस बार सोचा कि खुद ही ऐसी एक लिस्ट क्यों न बनायी जाए जिसमें से छानकर हिन्दी के पाठक अपने लिए चार-पाँच किताबें चुन सकें। विभिन्न पोर्टल्स से इकट्ठी की गयी जानकारी के आधार पर यहाँ हाल ही में प्रकाशित पंद्रह हिन्दी किताबों की एक सूची दी जा रही है जिसमें से कुछ किताबें आप आने वाले दिल्ली वर्ल्ड बुक फेयर में थोड़ा जांचकर, पढ़कर खरीद सकते हैं..

1. हसीनाबाद – गीता श्री

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वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास को एक राजनीतिक उपन्यास कहा जा रहा है, जिसकी लेखिका गीता श्री हैं। यह उपन्यास कहानी है एक लड़की गोलमी की, जो एक ऑर्केस्ट्रा डांसर से लेकर एक मंत्री होने तक का सफर तय करती है। लेकिन जल्दी ही लौट आती है अपनी पुरानी दुनिया ‘हसीनाबाद’ में। उसके लौट आने का कारण हसीनाबाद से उसका लगाव या सफलता के बाद आया अकेलापन ही नहीं, वे असहनीय नज़रें भी थीं जो एक पुरुष प्रधान समाज में उस स्त्री पर अनायास ही गड़ जाती हैं जो उनके बने-बनाए परिभाषित रास्तों से हटकर अपना एक अलग रास्ता बनाने लगती हैं। यह उपन्यास पढ़ने में रोचक भी होगा, ऐसी पूरी उम्मीद है।

2. दो लोग – गुलज़ार

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1946 की सर्दियाँ थीं। विभाजन की खबर फैलने के बाद अटक के एक गाँव से एक ट्रक निकलता है। इसमें वे लोग हैं जो यह नहीं जानते कि उन्हें कहाँ जाना है। उन्होंने केवल कुछ शब्द सुने हैं- ‘सरहद’, ‘मुहाजिर’… वे समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे सिर्फ एक लाइन खींच देने से पाकिस्तान, हिंदुस्तान से जुदा हो गया है।..

गुलज़ार का पहला उपन्यास इस ट्रक में बैठे लोगों के जीवन को रेखांकित करता है। यह लोग 1946 से लेकर कारगिल तक मिलते हैं और ढूंढते रहते है एक जगह- जिसे वे घर कह सकें.. जिसे वे अपना कह सकें..।

3. मदारीपुर जंक्शन – बालेन्दु द्विवेदीmadaripur junction

अशोक चक्रधर इस उपन्यास के बारे में कहते हैं-
“एक लंबे अंतराल के बाद मुझे एक ऐसा उपन्यास पढ़ने को मिला जिसमें करुणा की आधारशिला पर व्यंग्य से ओतप्रोत और सहज हास्य से लबालब पठनीय कलेवर है। कथ्य का वक्रोक्तिपरक चित्रण और भाषा का नव-नवोन्मेष, ऐसी दो गतिमान गाड़ियाँ हैं जो मदारीपुर के जंक्शन पर रुकती हैं। जंक्शन के प्लेटफार्म पर लोक-तत्वों के बड़े-बड़े गट्ठर हैं जो मदारीपुर उपन्यास में चढ़ने को तैयार हैं। इसमे स्वयं को तीसमारखाँ समझने वाले लोगों का भोलापन भी है और सौम्य दिखने वाले नेताओं का भालापन भी। प्रथमदृष्टया और कुल मिलाकर ‘मदारीपुर-जंक्शन’ अत्यंत पठनीय उपन्यास बन पड़ा है। लगता ही नहीं कि यह किसी उपन्यासकार का पहला उपन्यास है।”

वाणी प्रकाशन से आए बालेन्दु द्विवेदी के इस उपन्यास के बारे में और कुछ कहना शायद ज़रूरी नहीं है। यह पर्याप्त कारण है इसे खरीदने के लिए।

4. देह ही देश – गरिमा श्रीवास्तव

deh hi desh

राजपाल एंड संस से आयी गरिमा श्रीवास्तव की यह किताब बोस्निया युद्ध के बैकग्राउंड में वहां की स्त्रियों के संघर्ष को प्रस्तुत करती हैं, जिसमें वहां की सेक्सवर्कर्स की कहानियां भी एक मजबूत स्वर के साथ लिखी गयी हैं। गरिमा श्रीवास्तव अपने स्त्री लेखन और इसी विषय पर उनके शोध के लिए जानी जाती हैं। इस किताब की चर्चा भले ही बहुत न रही हो लेकिन आलोचकों की प्रसंशा यह किताब पा चुकी है। प्रो. अभय कुमार दुबे कहते हैं-

‘यह सिर्फ़ डायरी नहीं यात्रा भी है, बाहर से भीतर और देह से देश की, जो बताती है कि देह पर ही सारी लड़ाइयाँ लड़ी जाती हैं और सरहदें तय होती हैं ।’

5. किस्सा पौने चार यार – मनोहर श्याम जोशी

kissa paune char yaar

मनोहर श्याम जोशी ने यह उपन्यास 1966-67 में लिखना शुरू किया था जो उस वक़्त किसी कारणवश पूरा नहीं हो पाया था। एक लड़की और उसके कई प्रेमियों को लेकर लिखा गया यह उपन्यास अब 50 साल बाद वाणी प्रकाशन से अपने अधूरे रूप में ही प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास पर एक धारावाहिक पहले ही एक पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है, जिसे खूब सराहा गया। अब इसका एक उपन्यास के रूप में भी उपलब्ध होना हिन्दी साहित्य प्रेमियों के लिए एक तोहफा ही है।

6. सुर बंजारन – भगवानदास मोरवाल 

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किसी भी समाज में ऐसे कई रत्न ढूंढने पर मिल जाते हैं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन कला और संस्कृति को भेंट कर दिया लेकिन उनके अंतिम क्षणों में उन्हें एक गुमनाम ज़िन्दगी जीनी पड़ी। सुर बंजारन पारम्परिक गीत-संगीत और लोक परंपरा को आधार बनाता एक उपन्यास है जिसकी नायिका रागिनी भी ठुमरी, दोहा, छंद, लावनी से होती हुई अंत में खुद को विडंबनाओं से घिरा पाती है। इसके साथ ही यह उपन्यास गुम होती सांस्कृतिक विरासत की ओर भी इशारा करती है। यह उपन्यास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार किसी उपन्यास में हाथरस शैली की नौटंकी और वहाँ की कला-परंपरा को केंद्र में रखा गया है।

7. पाजी नज़्में – गुलज़ार

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राजकमल प्रकाशन से आ रही यह किताब गुलज़ार की नज़्मों का संग्रह है। इस किताब को बाकी किसी परिचय या विवरण की ज़रुरत नहीं। जिन्होंने गुलज़ार की बाकी नज़्मों की किताबें पढ़ी हैं, वे जानते हैं कि गुलज़ार की किताबों की एक अलग दुनिया है जिसमें कोफ़्त और गुस्सा भी उसी लहज़े में ज़ाहिर होता है जिस लहज़े में गुलज़ार प्यार की बातें करते हैं। उसी लहज़े में इंसान से शिकायत और उसी अंदाज़ में भगवान से। न बड़ी-बड़ी बातें, न भाषायी खेल, फिर भी सधे और सीधे अंदाज़ में इंसान को इंसान रखने की इतनी कारगर कोशिश कहीं और है?

8. रंगमंच एवं स्त्री – सुप्रिया पाठक

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भारतीय समाज में घर से बाहर की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए स्त्रियों ने हमेशा ही कड़ा संघर्ष किया है। अब जाकर इक्कीसवीं सदी में यह कहा जा सकता है कि स्त्रियों ने पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में ने केवल प्रवेश करना शुरू किया है, बल्कि अपनी उपस्थिति का एहसास भी समाज को करा दिया है। इसी यात्रा में रंगमच में स्त्रियों के प्रवेश, संघर्ष और योगदान की विवेचना करती है सुप्रिया पाठक की यह किताब ‘रंगमंच और स्त्री’। यह किताब राजकमल प्रकाशन से आयी है। सुप्रिया इस किताब में पारसी रंगमंच से लेकर आज तक की पूरी यात्रा स्त्रियों की प्रगति को आधार बनाकर प्रस्तुत कर रही हैं। इसे पढ़ना समाज में स्त्रियों को लेकर रखे जाने वाले पूर्वाग्रहों को तोड़ने में भी सहायक होगा।

9. आपकमाई – स्वानन्द किरकिरे

aapkamai

‘बावरा मन देखने चला एक सपना’ और ‘बहती हवा सा था वो’ जैसे बेहतरीन गीत लिखने वाले और दो बार के नेशनल अवार्ड विजेता स्वानन्द किरकिरे का यह पहला कविता संग्रह है। यह किताब राजकमल प्रकाशन से आयी है और स्वानन्द की पहली किताब है। जो लोग स्वानन्द की कविताएँ सोशल मीडिया पर पढ़ चुके हैं, उन्हें यह किताब खरीदने से पहले एक बार भी नहीं सोचना पड़ेगा। अगर आपको कविताएँ पसंद हैं तो यह किताब आपकी खरीदी जाने वाली लिस्ट में होनी ही चाहिए।

10. दक्खिन टोला – कमलेश

‘दुनिया की इस भीड़ में सबसे पीछे हम खड़े…’

सामाजिक परिवेश में यह पंक्ति उन लोगों की कहानी बयाँ करती है जो संसाधनों से वंचित हैं और जिन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए भी अथाह संघर्ष करना पड़ता है। पत्रकार और कथाकार कमलेश का यह कहानी संग्रह ‘दक्खिन टोला’ भी इसी पंक्ति के द्वारा परिभाषित किया जा सकता है। यह किताब वाणी प्रकाशन से आयी है और हाल ही में इसका लॉन्च पटना बुक फेयर में किया गया।

11. प्रेम में डर – निवेदिता शकील

कवियों का धर्म अक्सर समाज में होती घटनाओं पर अपनी नज़र रखने और उनपर ज्वलंत कविताएँ लिखने को ठहरा दिया जाता है, किन्तु एक कवि, उन हो चुकी घटनाओं पर विवेचना देने से बेहतर, उन अवांछनीय घटनाओं को आगे होने से रोकने के प्रयास में अपनी ऊर्जा लगाना चाहता है। घृणा की निंदा या प्रेम की महिमा असर तो एक ही छोड़ते होंगे?! वाणी प्रकाशन से ‘निवेदिता शकील’ का कविता संग्रह ‘प्रेम में डर’ इसी पहलू की तरफ इशारा करता नज़र आता है। बाकी दृश्य साफ़ देखने के लिए किताब का पढ़ा जाना ज़रूरी है।

12. कॉरपोरेट कबूतर – शान रहमान

corporate kabootar

पटना में कॉरपोरेट में ही कार्यरत शान रहमान हाल ही में हिन्द युग्म से प्रकाशित यह कहानी संग्रह लेकर आए हैं। हिंदुस्तानी ज़बान में आम जीवन के कुछ किस्से हैं जो कई स्तर पर हमारी ज़िन्दगी को भी छूते हुए चलते हैं। कुछ दिनों पहले शान से बात करने का मौका मिला। बेहद सुलझी और स्पष्ट बातें करते हैं। उम्मीद हैं उनकी कहानियाँ भी एक सीधे रास्ते में हमें खुद से जोड़ पाएँगी।

13. एक अतिरिक्त ‘अ’ – रश्मि भारद्वाज

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रश्मि भारद्वाज का यह कविता संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित होकर आया है। यह नवलेखन पुरस्कार के लिए अनुशंसित कृति है। भारतीय समाज में स्त्रियों को लेकर एक पुरानी-गली हुई सोच को उघाड़ने से लेकर एक इंसान के भीतरी अवसाद की बातें करती कविताएँ इस संग्रह में हैं। बीच-बीच में सामाजिक आडम्बरों, अशिष्टता और दोगलेपन की तरफ भी इशारा किया गया है। मैं यह किताब पढ़ चुका हूँ इसलिए कह सकता हूँ कि यह किताब आप छोड़ नहीं सकते।

14. डार्क हॉर्स – एक अनकही दास्ताँ – नीलोत्पल मृणाल

dark horse

नीलोत्पल मृणाल की यह किताब 2016 की युवा साहित्य अकादेमी पुरुस्कार की विजेता है। इस उपन्यास में गाँव से शहर आने वाले उन स्टूडेंट्स की कहानी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में लगे हैं। उनके जीवन के विभिन्न संघर्ष, बदलाव, दिनचर्या आदि बताती यह किताब भागलपुर के रहने वाले संतोष सिन्हा की कहानी है। यह किताब उन विद्यार्थियों को तो ज़रूर ही पढ़नी चाहिए जो ऐसी परीक्षाओं में असफल होने के कारण निराश हैं। यह किताब निराशा से निकालकर उन लोगों को एक बल देगी, यह लेखक की आशा है।

वैसे यह किताब अपने पाँचवे संस्करण में है, लेकिन अभी यह एक नए आवरण में हिन्द युग्म/वेस्टलैंड से प्रकाशित होकर आयी है, तो यह किताब भी अपनी सूची में रखी जा सकती है।

15. बाघ और सुगना मुण्डा की बेटी – अनुज लुगुनbagh aur sugna munda ki beti

मुंडा समाज और आदिवासी समाज को अपनी कविता का विषय बनाते हुए यह लम्बी कविता, इतिहास को टटोलते हुए एक नए समाज की कल्पना करती है। जो भी समाज में पुराना हो चुका है और जिसे समाज के विभिन्न अंगों को जीवित रखने के लिए बदलने की ज़रुरत है, ऐसे विस्तार पर प्रहार करती यह कविता समाज के विकास का एक व्यापक चित्र हमारे सामने रखती है। ‘अनुज लुगुन’ की यह किताब वाणी प्रकाशन से आयी है।

यहाँ यह पंद्रह किताबों की सूची समाप्त होती है। आपने इनमें से कौन सी किताब खरीदी और कौन-सी नहीं और क्यों.. वक़्त मिले तो बताइएगा।

हैप्पी बुक-फेयरिंग!!

 

चित्र श्रेय: Eugenio Mazzone

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