अनुवाद: कृष्ण कुमार

पुलिस का दारोग़ा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, बग़ल में एक बण्डल दबाए बाज़ार के चौक से गुज़र रहा था। उसके पीछे-पीछे लाल बालोंवाला पुलिस का एक सिपाही हाथ में एक टोकरी लिए लपका चला आ रहा था। टोकरी जब्त की गई झड़गरियों से ऊपर तक भरी हुई थी। चारों ओर ख़ामोशी। चौक में एक भी आदमी नहीं… भूखे लोगों की तरह दुकानों और शराबख़ानों के खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे थे, यहाँ तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता था।

“अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का!” ओचुमेलोव के कानों में सहसा यह आवाज़ आयी, “पकड़ तो लो, छोकड़ो! जाने न पाए! अब तो काटना मना हो गया है! पकड़ लो! आ… आह!”

कुत्ते की पैं-पैं की आवाज़ सुनायी दी। आचुमेलोव ने मुड़कर देखा कि व्यापारी पिचूगिन की लकड़ी की टाल में से एक कुत्ता तीन टाँगों से भागता हुआ चला आ रहा है। कलफ़दार छपी हुई कमीज़ पहने, वास्कट के बटन खोले एक आदमी उसका पीछा कर रहा है। वह कुत्ते के पीछे लपका और उसे पकड़ने की काशिश में गिरते-गिरते भी कुत्ते की पिछली टाँग पकड़ ली। कुत्ते की पैं-पैं और वहीं चीख़, ‘जाने न पाए!’ दोबारा सुनायी दी। ऊँखते हुए लोग दुकानों से बाहर गरदनें निकालकर देखने लगे, और देखते-देखते एक भीड़ टाल के पास जमा हो गयी, मानो ज़मीन फाड़कर निकल आयी हो।

“हुज़ूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फ़साद हो रहा है!” सिपाही बोला।

आचुमेलोव बाईं ओर मुड़ा और भीड़ की तरफ़ चल दिया। उसने देखा कि टाल के फाटक पर वही आदमी खड़ा है। उसकी वास्कट के बटन खुले हुए थे। वह अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाए, भीड़ को अपनी लहूलुहान उँगली दिखा रहा था। लगता था कि उसके नशीले चेहरे पर साफ़ लिखा हुआ हो ‘अरे बदमाश!’ और उसकी उँगली जीत का झण्डा है। आचुमेलोव ने इस व्यक्ति को पहचान लिया। यह सुनार खूकिन था। भीड़ के बाचोंबीच अगली टाँगे फैलाए अपराधी, सफ़ेद ग्रे हाउण्ड का पिल्ला, छिपा पड़ा, ऊपर से नीचे तक काँप रहा था। उसका मुँह नुकीला था और पीठ पर पीला दाग़ था। उसकी आँसू-भरी आँखों में मुसीबत और डर की छाप थी।

“यह क्या हंगामा मचा रखा है यहाँ?” आचुमलोव ने कंधों से भीड़ को चीरते हुए सवाल किया। “यह उँगली क्यों ऊपर उठाए हो? कौन चिल्ला रहा था?”

“हुज़ूर! मैं चुपचाप अपनी राह जा रहा था, बिल्कुल गाय की तरह…”, खूकिन ने अपने मुँह पर हाथ रखकर, खाँसते हुए कहना शुरू किया, “मिस्त्री मित्रिच से मुझे लकड़ी के बारे में कुछ काम था। एकाएक, न जाने क्यों, इस बदमाश ने मरी उँगली में काट लिया। …हुज़ूर माफ़ करें, पर मैं कामकाजी आदमी ठहरा… और फिर हमारा काम भी बड़ा पेचिदा है। एक हफ़्ते तक शायद मेरी उँगली काम के लायक़ न हो पाएगी। मुझे हरजाना दिलवा दीजिए। और हुज़ूर, क़ानून में भी कहीं नहीं लिखा है कि हम जानवरों को चुपचाप बरदाश्त करते रहें। …अगर सभी ऐसे ही काटने लगें, तब तो जीना दूभर हो जाएगा।”

“हुँह… अच्छा…” ओचुमेलाव ने गला साफ़ करके, त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा, “ठीक है। …अच्छा, यह कुत्ता है किसका? मैं इस मामले को यहीं नहीं छोड़ूँगा! कुत्तों को खुला छोड़ रखने के लिए मैं इन लोगों को मज़ा चखाऊँगा! जो लोग क़ानून के अनुसार नहीं चलते, उनके साथ अब सख़्ती से पेश आना पड़ेगा! ऐसा जुरमाना ठोकूँगा कि छठी का दूध याद आ जाएगा। बदमाश कहीं के! मैं अच्छी तरह सिखा दूँगा कि कुत्तों और हर तरह के ढोर-डगार को ऐसे छुट्टा छोड़ देने का क्या मतलब है! मैं उसकी अक़्ल दुरुस्त कर दूँगा, येल्दीरिन!”

सिपाही को सम्बोधित कर दारोग़ा चिल्लाया, “पता लगाओ कि यह कुत्ता है किसका, और रिपोर्ट तैयार करो! कुत्ते को फ़ौरन मरवा दो! यह शायद पागल होगा। …मैं पूछता हूँ, यह कुत्ता किसका है?”

“शायद जनरल जिगालोव का हो!” भीड़ में से किसी ने कहा।

“जनरल जिगालोव का? हुँह… येल्दीरिन, ज़रा मेरा कोट तो उतारना। ओफ़, बड़ी गरमी है। …मालूम पड़ता है कि बारिश होगी। अच्छा, एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि इसने तुम्हें काटा कैसे?” ओचुमेलोव खूकिन की ओर मुड़ा, “यह तुम्हारी उँगली तक पहुँचा कैसे? ठहरा छोटा-सा और तुम हो पूरे लम्बे-चौड़े। किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी और सोचा होगा कि कुत्ते के सिर मढ़कर हरजाना वसूल कर लो। मैं ख़ूब समझता हूँ! तुम्हारे जैसे बदमाशों की तो मैं नस-नस पहचानता हूँ!”

“इसने उसके मुँह पर जलती सिगरेट लगा दी थी, हुज़ूर! यूँ ही मज़ाक़ में और यह कुत्ता बेवक़ूफ़ तो है नहीं, उसने काट लिया। यह शख़्स बड़ा फिरती है, हुज़ूर!”

“अब! झूठ क्यों बोलता है? जब तूने देखा नहीं, तो गप्प क्यों मारता है? और सरकार तो ख़ुद समझदार हैं। वह जानते हैं कि कौन झूठा है और कौन सच्चा। ख़ुद मेरा भाई पुलिस में है। …बताए देता हूँ… हाँ…”

“बन्द करो यह बकवास!”

“नहीं, यह जनरल साहब का कुत्ता नहीं है”, सिपाही ने गम्भीरतापूर्वक कहा, “उनके पास ऐसा कोई कुत्ता है ही नहीं, उनके तो सभी कुत्ते शिकारी पौण्डर हैं।”

“तुम्हें ठीक मालूम है?”

“जी सरकार।”

“मैं भी जनता हूँ। जनरल साहब के सब कुत्ते अच्छी नस्ल के हैं, एक-से-एक क़ीमती कुत्ता है उनके पास। और यह! तो बिल्कुल ऐसा-वैसा ही है, देखो न! बिल्कुल मरियल है। कौन रखेगा ऐसा कुत्ता? तुम लोगों का दिमाग़ तो ख़राब नहीं हुआ? अगर ऐसा कुत्ता मास्का या पीटर्सबर्ग में दिखायी दे तो जानते हो क्या हो? क़ानून की परवाह किए बिना, एक मिनट में उससे छुट्टी पाली जाए! खूकिन! तुम्हें चोट लगी है। तुम इस मामले को यों ही मत टालो। …इन लोगों को मज़ा चखाना चाहिए! ऐसे काम नहीं चलेगा।”

“लेकिन मुमकिन है, यह जनरल साहब का ही हो”, सिपाही बड़बड़ाया, “इसके माथे पर तो लिखा नहीं है। जनरल साहब के अहाते में मैंने कल बिल्कुल ऐसा ही कुत्ता देखा था।”

“हाँ, हाँ, जनरल साहब का तो है ही!” भीड़ में से किसी की आवाज़ आयी।

“हुँह। …येल्दीरिन, ज़रा मुझे कोट तो पहना दो। अभी हवा का एक झोंका आया था, मुझे सरदी लग रही है। कुत्ते को जनरल साहब के यहाँ ले जाओ और वहाँ मालूम करो। कह देना कि मैंने इसे सड़क पर देखा था और वापस भिजवाया है। और हाँ, देखो, यह कह देना कि इसे सड़क पर न निकलने दिया करें। मालूम नहीं, कितना क़ीमती कुत्ता हो और अगर हर बदमाश इसके मुँह में सिगरेट घुसेड़ता रहा तो कुत्ता बहुत जल्दी तबाह हो जाएगा। कुत्ता बहुत नाज़ुक जानवर होता है। और तू हाथ नीचा कर, गधा कहीं का! अपनी गन्दी उँगली क्यों दिखा रहा है? सारा क़ुसूर तेरा ही है।”

“यह जनरल साहब का बावर्ची आ रहा है, उससे पूछ लिया जाए। …ऐ प्रोखोर! ज़रा इधर तो आना, भाई! इस कुत्ते को देखना, तुम्हारे यहाँ का तो नहीं है?”

“वाह! हमारे यहाँ कभी भी ऐसा कुत्ता नहीं था!”

“इसमें पूछने की क्या बात थी? बेकार वक़्त ख़राब करना है”, ओचुमेनलोव ने कहा, “आवारा कुत्ता… यहाँ खड़े-खड़े इसके बारे में बात करना समय बरबाद करना है। तुमसे कहा गया है कि आवारा है तो आवारा ही समझो। मार डालो और छुट्टी पाओ?”

“हमारा तो नहीं है”, प्रोखोर ने फिर आगे कहा, “यह जनरल साहब के भाई का कुत्ता है। हमारे जनरल साहब को ग्रे हाउण्ड के कुत्तों में कोई दिलचस्पी नहीं है, पर उनके भाई साहब को यह नस्ल पसन्द है।”

“क्या? जनरल साहब के भाई आए हैं? ब्लादीमिर इवानिच?” अचम्भे से ओचुमेलोव बोल उठा, उसका चेहरा आह्वाद से चमक उठा। “ज़रा सोचो तो! मुझे मालूम भी नहीं! अभी ठहरेंगे क्या?”

“हाँ।”

“वाह जी वाह! वह अपने भाई से मिलने आए और मुझे मालूम भी नहीं कि वह आए हैं! तो यह उनका कुत्ता है? बहुत ख़ुशी की बात है। इसे ले जाओ। कैसा प्यारा नन्हा-सा मुन्ना-सा कुत्ता है। इसकी उँगली पर झपटा था! बस-बस, अब काँपो मत। गुर्र… गुर्र… शैतान ग़ुस्से में है… कितना बढ़िया पिल्ला है!”

प्रोखोर ने कुत्ते को बुलाया और उसे अपने साथ लेकर टाल से चल दिया। भीड़ खूकिन पर हँसने लगी।

“मैं तुझे ठीक कर दूँगा।” ओचुमेलोव ने उसे धमकाया और अपना लबादा लपेटता हुआ बाज़ार के चौक के बीच अपने रास्ते चला गया।

अंतोन चेखव की कहानी 'कमज़ोर'

Book by Anton Chekhov:

अंतोन चेखव
अंतोन पाव्लाविच चेख़व (२९ जनवरी, १८६० - १५ जुलाई, १९०४) रूसी कथाकार और नाटककार थे। अपने छोटे से साहित्यिक जीवन में उन्होंने रूसी भाषा को चार कालजयी नाटक दिए जबकि उनकी कहानियाँ विश्व के समीक्षकों और आलोचकों में बहुत सम्मान के साथ सराही जाती हैं। चेखव अपने साहित्यिक जीवन के दिनों में ज़्यादातर चिकित्सक के व्यवसाय में लगे रहे। वे कहा करते थे कि चिकित्सा मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका।