‘Aadat’, a poem by Archana Verma
मरदों ने घर को
लौटने का पर्याय बना लिया
और लौटने को मर जाने का
घर को फिर उन्होंने देखा ही नहीं
लौटकर उम्र भर
मरने से डरने का
यही तो था एक सम्भव नतीजा!
घर भर की औरतें
जाने किसकी प्रतीक्षा में
तवा चढ़ाए, चूल्हा लहकाए
बैठी रहीं सदियों कि
आते ही
गरम रोटी उतार सकें।
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