अनुवाद: प्रेमचंद
मैंने तुम्हें पिछले खत में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दरजे के जानवर पैदा हुए और धीरे-धीरे तरक्की करते हुए लाखों बरस में उस सूरत में आए जो हम आज देखते हैं। हमें एक बड़ी दिलचस्प और ज़रूरी बात यह भी मालूम हुई कि जानदार हमेशा अपने को आसपास की चीजों से मिलाने की कोशिश करते गए। इस कोशिश में उनमें नई आदतें पैदा होती गईं और वे ज्यादा ऊँचे दरजे के जानवर होते गए। हमें यह तब्दीली या तरक्की कई तरह दिखाई देती है। इसकी मिसाल यह है कि शुरू-शुरू के जानवरों में हड्डियाँ न थीं लेकिन हड्डियों के बगैर वे बहुत दिनों तक जीवित न रह सकते थे इसलिए उनमें हड्डियाँ पैदा हो गईं। सबसे पहले रीढ़ की हड्डी पैदा हुई। इस तरह दो किस्म के जानवर हो गए- हड्डीवाले और बेहड्डीवाले। जिन आदमियों या जानवरों को तुम देखती हो वे सब हड्डीवाले हैं!
एक और मिसाल लो। नीचे दरजे के जानवरों में मछलियाँ अंडे दे कर उन्हें छोड़ देती हैं। वे एक साथ हजारों अंडे देती हैं लेकिन उनकी बिल्कुल परवाह नहीं करतीं। माँ बच्चों की बिल्कुल खबर नहीं लेती। वह अंडों को छोड़ देती है और उनके पास कभी नहीं आती। इन अंडों की हिफाजत तो कोई करता नहीं, इसलिए ज्यादातर मर जाते हैं। बहुत थोड़े से अंडों से मछलियाँ निकलती हैं। कितनी जानें बरबाद जाती हैं! लेकिन ऊँचे दरजे के जानवरों को देखो तो मालूम होगा कि उनके अंडे या बच्चे कम होते हैं लेकिन वे उनकी खूब हिफाजत करते हैं। मुर्गी भी अंडे देती है लेकिन वह उन पर बैठती है और उन्हें सेती है। जब बच्चे निकल आते हैं तो वह कई दिन तक उन्हें चुगाती है। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तब माँ उनकी फिक्र छोड़ देती है।
इन जानवरों में और उन जानवरों में जो बच्चे को दूध पिलाते हैं बड़ा फर्क है। यह जानवर अंडे नहीं देते। माँ अंडे को अपने अंदर लिए रहती है और पूरे तौर पर बने हुए बच्चे जनती है। जैसे कुत्ता, बिल्ली या खरगोश। इसके बाद माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है, लेकिन इन जानवरों में भी बहुत-से बच्चे बरबाद हो जाते हैं। खरगोश के कई-कई महीनों के बाद बहुत-से बच्चे पैदा होते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर मर जाते हैं। लेकिन ऊँचे दरजे के जानवर एक ही बच्चा देते हैं और बच्चे को अच्छी तरह पालते-पोसते हैं जैसे हाथी।
अब तुमको यह भी मालूम हो गया कि जानवर ज्यों-ज्यों तरक्की करते हैं वे अंडे नहीं देते बल्कि अपनी सूरत के पूरे बने हुए बच्चे जनते हैं, जो सिर्फ कुछ छोटे होते हैं। ऊँचे दरजे के जानवर आम तौर से एक बार में एक ही बच्चा देते हैं। तुमको यह भी मालूम होगा कि ऊँचे दरजे के जानवरों को अपने बच्चों से थोड़ा-बहुत प्रेम होता है। आदमी सबसे ऊँचे दरजे का जानवर है, इसलिए माँ और बाप अपने बच्चों को बहुत प्यार करते और उनकी हिफाजत करते हैं।
इससे यह मालूम होता है कि आदमी ज़रूर नीचे दरजे के जानवरों से पैदा हुआ होगा। शायद शुरू के आदमी आजकल के से आदमियों की तरह थे ही नहीं। वे आधे बनमानुस और आधे आदमी रहे होंगे और बंदरों की तरह रहते होंगे। तुम्हें याद है कि जर्मनी के हाइडलबर्ग में तुम हम लोगों के साथ एक प्रोफेसर से मिलने गई थीं? उन्होंने एक अजायबखाना दिखाया था जिसमें पुरानी हड्डियाँ भरी हुई थीं, खासकर एक पुरानी खोपड़ी जिसे वह संदूक में रखे हुए थे। खयाल किया जाता है कि यह शुरू-शुरू के आदमी की खोपड़ी होगी। हम अब उसे हाइडलबर्ग का आदमी कहते हैं, सिर्फ इसलिए कि खोपड़ी हाइडलबर्ग के पास गड़ी हुई मिली थी। यह तो तुम जानती ही हो कि उस जमाने में न हाइडलबर्ग का पता था न किसी दूसरे शहर का।
उस पुराने जमाने में, जब कि आदमी इधर-उधर घूमते फिरते थे, बड़ी सख्त सर्दी पड़ती थी इसीलिए उसे बर्फ का जमाना कहते हैं। बर्फ के बड़े-बड़े पहाड़ जैसे आज-कल उत्तरी ध्रुव के पास हैं, इंग्लैंड और जर्मनी तक बहते चले जाते थे। आदमियों का रहना बहुत मुश्किल होता होगा, और उन्हें बड़ी तकलीफ से दिन काटने पड़ते होंगे। वे वहीं रह सकते होंगे जहाँ बर्फ के पहाड़ न हों। वैज्ञानिक लोगों ने लिखा है कि उस जमाने में भूमध्य सागर न था बल्कि वहाँ एक या दो झीलें थीं। लाल सागर भी न था। यह सब ज़मीन थी। शायद हिंदुस्तान का बड़ा हिस्सा टापू था। और हमारे सूबे पंजाब का कुछ हिस्सा समुद्र था। खयाल करो कि सारा दक्षिणी हिंदुस्तान और मध्य हिंदुस्तान एक बहुत बड़ा द्वीप है और हिमालय और उसके बीच में समुद्र लहरें मार रहा है। तब शायद तुम्हें जहाज में बैठ कर मसूरी जाना पड़ता।
शुरू-शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो इसके चारों तरफ बड़े-बड़े जानवर रहे होंगे और उसे उनसे बराबर खटका लगा रहता होगा। आज आदमी दुनिया का मालिक है और जानवरों से जो काम चाहता है करा लेता है। बाज़ों को वह पाल लेता है जैसे घोड़ा, गाय, हाथी, कुत्ता, बिल्ली वगैरह। बाज़ों को वह खाता है और बाज़ों का वह दिल बहलाने के लिए शिकार करता है, जैसे शेर और चीता। लेकिन उस जमाने में वह मालिक न था, बल्कि बड़े-बड़े जानवर उसी का शिकार करते थे और वह उनसे जान बचाता फिरता था। मगर धीरे-धीरे उसने तरक्की की और दिन-दिन ज्यादा ताकतवर होता गया यहाँ तक कि वह सब जानवरों से मजबूत हो गया। यह बात उसमें कैसे पैदा हुई? बदन की ताकत से नहीं क्योंकि हाथी उससे कहीं ज्यादा मजबूत होता है। बुद्धि और दिमाग की ताकत से उसमें यह बात पैदा हुई।
आदमी की अक्ल कैसे धीरे-धीरे बढ़ती गई, इसका शुरू से आज तक का पता हम लगा सकते हैं। सच तो यह है कि बुद्धि ही आदमियों को और जानवरों से अलग कर देती है। बिना समझ के आदमी और जानवर में कोई फर्क नहीं है।
पहली चीज, जिसका आदमी ने पता लगाया वह शायद आग थी। आजकल हम दियासलाई से आग जलाते हैं। लेकिन दियासलाइयाँ तो अभी हाल में बनी हैं। पुराने जमाने में आग बनाने का यह तरीका था कि दो चकमक पत्थरों को रगड़ते थे यहाँ तक कि चिनगारी निकल आती थी और इस चिनगारी से सूखी घास या किसी दूसरी सूखी चीज़ में आग लग जाती थी। जंगलों में कभी-कभी पत्थरों की रगड़ या किसी दूसरी सूखी चीज़ की रगड़ से आप ही आग लग जाती है। जानवरों में इतनी अक्ल कहाँ थी कि इससे कोई मतलब की बात सोचते। लेकिन आदमी ज्यादा होशियार था। उसने आग के फायदे देखे। यह जाड़ों में उसे गर्म रखती थी और बड़े-बड़े जानवरों को, जो उसके दुश्मन थे, भगा देती थी। इसलिए जब कभी आग लग जाती थी तो मर्द और औरत उसमें सूखी पत्तियाँ फेंक-फेंक कर उसे जलाए रखने की कोशिश करते होंगे। धीरे-धीरे उन्हें मालूम हो गया कि वे चकमक पत्थरों को रगड़ कर खुद आग पैदा कर सकते हैं। उसके लिए यह बड़े मार्के की बात थी, क्योंकि इसने उन्हें दूसरें जानवरों से ताकतवर बना दिया। आदमी को दुनिया के मालिक बनने का रास्ता मिल गया।