आदमी क्या करता है
जुगुप्साओं से आक्रांत होकर
चीख़ने के बाद
गहरे मौन में चला जाता है
आदिम हथियारों पर धार लगाता है
नोचता-बकोटता है
फिर नाख़ून काटकर
अपने सभ्य होने का प्रमाण देता है
कुत्सित ईप्साओं में लिप्त
अपनी अव्यवस्थाओं के प्रहर गिनता है
पूर्वाह्न में इष्ट को भोग लगाता है
प्रदोष में दीवारें चाटता है
जटिलताओं के स्वाँग करता है
रंग बदलनेवाली और हुक्म बजानेवाली
बाज़ारू कुर्सियाँ बनाता है
उनपर बैठकर ख़ुद को बेचता है
और अट्टहास करता है
आदमी आदमियत से चिढ़ता है
उससे दूर भागता है
सातवें आसमान पर चढ़कर
अपनी छतों-छपरियों पर थूकता है
विज्ञान के अनुसार
आदमी विकास के क्रम में
जब डैनुविअस था
तब उसने ज़मीन पर चलने से पहले
पेड़ों पर दो पैरों से चलना सीखा था
आधुनिक आदमी उपयोगितावादी है
जब सारे पेड़ काट लेगा
तब ज़मीन काटने की नींव रखेगा।