किताब: ‘आग की यादें’
प्रकाशक: गार्गी प्रकाशन
सम्पादक: रेयाज़ुल हक़
अनुवाद : पी. कुमार मंगलम

चयन एवं प्रस्तुति : आमिर

साइकिल

साइकिलों ने दुनिया में औरतों को आज़ाद करने में किसी भी चीज़ और किसी भी इंसान से ज़्यादा मदद की है, सुसान एंथनी ने कहा था और उसने अपनी संघर्ष की साथी एलिजाबेथ स्टैंटन से कहा था—घूमती हुईं औरतें, पैडल चलाती हुईं वोट के अधिकार की तरफ़ बढ़ रही हैं।

फेलिप्पे तिस्सी जैसे कुछ डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि साइकिल से गर्भपात और बाँझपन हो सकता है और दूसरे डॉक्टरों ने यक़ीन के साथ तस्दीक की थी कि यह बेशर्म औज़ार चरित्रहीनता के लिए प्रेरित करता था, क्योंकि इससे औरतों को लुत्फ़ आता था जो सीट के साथ अपने निजी अंगों को रगड़ती थीं।

सच्चाई यह है कि साइकिल की वजह से औरतें अपने बूते कहीं आ-जा सकती थीं, घरों को छोड़ सकती थीं और आज़ादी के ख़तरनाक स्वाद के मज़े ले सकती थीं।

और साइकिल की वजह से ही, उनकी देह को दबोचकर रखने वाला कॉर्सेट अलमारियों से बेदख़ल हुआ और अजायबघरों में पहुँच गया, क्योंकि यह पैडल मारने में रुकावट बनता था।

शैतान ग़रीब है

आज शहर एक बहुत बड़ी जेल है, जिसमें ख़ौफ़ के क़ैदी रहते हैं, जहाँ मोर्चेबन्दियों को घरों की शक्ल दी गई है और कपड़े बख़्तरों की शक्लें हैं।

एक घेरेबंदी। अपना ध्यान भटकने मत दो, अपनी चौकसी को कभी ढीला मत पड़ने दो, कभी भरोसा मत करो, इस दुनिया के मालिक यह कहते हैं। बेधड़क मालिक जो आबोहवा से बलात्कार करते हैं, देशों को अगवा करते हैं, मज़दूरियाँ छीन लेते हैं और सामूहिक जनसंहार करते हैं। वे चेतावनी देते हैं, ख़बरदार, बुरे लोग भरे पड़े हैं, बदनसीब झुग्गियों में ठसमठस, अपनी अदावत को अपने भीतर सुलगाते हुए, अपने ज़ख़्मों को बेक़रारी से कुरेदते हुए।

ग़रीब, हर तरह की ग़ुलामी के लिए एक फटेहाल कंधा, सभी जंगों के लिए लाशें, सभी जेलों के लिए माँस, सभी नौकरियों के लिए मोलभाव के हाथ।

भूख, जो ख़ामोशी से मारती जाती है, ख़ामोश लोगों को भी मार डालती है। विशेषज्ञ उनके लिए बोलते हैं, ग़रीबी के माहिर, जो हमें बताते हैं कि ग़रीब क्या नहीं करते हैं कि वे क्या नहीं खाते हैं कि वे कितने वज़नी नहीं हैं कि वे किस बुलंदी तक नहीं पहुँच सकते कि वे क्या नहीं सोचते कि वे किन पार्टियों को वोट नहीं देते कि वे किसमें यक़ीन नहीं करते।

अकेला सवाल, जिसका जवाब नहीं दिया जाता कि ग़रीब लोग ग़रीब क्यों हैं। क्या शायद ऐसा इसलिए है कि हम उनकी भूख पर पलते हैं और उनकी बेपर्दगी से अपना तन ढकते हैं?

व्यवस्था

एक मशहूर लातिन अमरीकी प्लेब्वाय बिस्तर में अपनी प्रेमिका से प्यार नहीं कर सका। “मैंने पिछली रात बहुत पी ली थी”, उसने नाश्ते के वक़्त सफ़ाई दी। दूसरी रात उसने अपनी नाकामी को थकान के मत्थे मढ़ा। तीसरी रात उसने प्रेमिका बदल दी। एक हफ़्ते के बाद वह एक डॉक्टर से सलाह लेने गया। एक महीने के बाद उसने डॉक्टर बदल दिया। कुछ वक़्त गुज़रा, उसने दिमाग़ी डॉक्टर को दिखाना शुरू किया। मुलाक़ात दर मुलाक़ात उसके ज़ेहन में डूबे और दबा दिए गए अहसास अब सतह पर आने लगे थे और उसे याद आया—

1934, चाको युद्ध। छह बोलीवियाई सैनिक दूसरी टुकड़ियों की तलाश में ऊपरी इलाक़े में भटक रहे थे। वे हारी हुई टुकड़ी के बचे हुए फ़ौजी थे। जमी हुई स्तेपी में वे ख़ुद को घसीटते रहे, उन्हें न कोई इंसानी रूह मिली और न ही उनके पास भोजन का कोई टुकड़ा ही था। यह उन्हीं में से एक फ़ौजी था।

एक दिन, दोपहर बाद उन्हें एक इंडियन लड़की मिली जो बकरियों के एक रेवड़ की रखवाली कर रही थी। उन्होंने उसका पीछा किया, उसे पकड़ा और फिर उसका बलात्कार किया। उनमें से हरेक ने, बारी-बारी से।

अब इस आदमी की बारी थी, जो आख़िरी आदमी था। जब वह उस इंडियन पर झुका, उसने ग़ौर किया कि अब वह साँस नहीं ले रही थी।

पाँच सैनिक उसके चारों ओर घेरा बनाकर खड़े थे।

उन्होंने उसकी पीठ पर अपनी राइफ़लें तान दीं।

और तब, ख़ौफ़ और मौत में से, उस आदमी ने ख़ौफ़ को चुना।

सामाजिक वर्गों की पैदाइश

शुरूआती दिनों में, भूख के उन दिनों में, पहली औरत मिट्टी कुरेद रही थी कि सूरज की किरणें पीछे से आकर उसके भीतर दाख़िल हो गईं। पलभर में ही, एक बच्चे का जन्म हुआ।

पचाकमाक देवता को सूरज की यह हरकत बिलकुल पसंद नहीं आयी और उसने अभी-अभी पैदा हुए बच्चे के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उस मरे हुए बच्चे में से पहले पौधे फूटे। दाँतों से अनाज के दाने बने, हड्डियाँ युका (कंद) बनीं, माँस आलू, जैम और स्क्वैश में तब्दील हुआ…

फिर तो सूरज को बहुत तेज ग़ुस्सा आया। उसकी किरणों ने पेरू के तट को जला डाला और उसे हमेशा के लिए सूखा बना दिया। बदले की आख़िरी हरकत के बतौर उसने मिट्टी में तीन अण्डे फोड़े।

सुनहरे अण्डे से मालिक पैदा हुए।

रुपहले अण्डे से मालिकों की औरतें पैदा हुईं।

और तांबे के अण्डे से वे पैदा हुए, जो मेहनत करते हैं।

शहरज़ाद

एक से बदला लेने के लिए, जिसने बादशाह को धोखा दिया था, बादशाह ने सबके सिर क़लम करवा दिए।

वह शाम को शादी करता और सवेरे क़त्ल कर दी गई बीवी से अलग होता।

एक के बाद एक, कुँवारी लड़कियाँ पहले अपना कुँवारापन और फिर अपनी जान खोती रहीं।

शहरज़ाद उनमें से अकेली थी, जो पहली रात बच गई और फिर ज़िन्दगी के हरेक नये दिन से एक नयी कहानी का सौदा करके वह बची रही।

उसकी इन सुनी हुई, पढ़ी हुई या कल्पना की गई कहानियों ने उसे अपना सिर क़लम किए जाने से बचा लिया। उसने उन्हें, सोने के कमरे के अँधेरे के सन्नाटे में सुनाया जहाँ चाँद की रौशनी के अलावा कोई रौशनी नहीं थी। उसने उन्हें सुनाते हुए लुत्फ़ का अहसास किया और बादशाह को भी लुत्फ़ दिया। लेकिन वह चौकन्ना था। कभी-कभी, कहानी के दौरान, उसे महसूस होता कि राजा उसके गले का मुआयना कर रहा है।

अगर राजा ऊब जाता तो वह हार जाती।

मर जाने का ख़ौफ़ दास्तानगोई की महारत थी।

'मिलेना को लिखे काफ़्का के पत्रों के कुछ अंश'

किताब सुझाव:

एदुआर्दो गालेआनो
(3 सितम्बर 1940 - 13 अप्रैल 2015) युरुग्वाएन पत्रकार, लेखक व उपन्यासकार। एदुआर्दो गालेआनो का लेखन साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ आलोचना और विद्रोह का लेखन है, जिसमें वे बड़ी सख़्ती से इसके सभी कल–पुर्ज़ों और सारे तौर–तरीक़ों की आलोचना पेश करते हैं। उनकी मुख्य किताबों में दिआस ई नोचेस दे आमोर ई दे गेर्रा (प्यार और जंग के दिन और रातें, डेज एण्ड नाइट्स ऑफ लव एण्ड वार), एल लिब्रो दे लोस आब्रासोस (आलिंगनों की किताब, द बुक ऑफ एम्ब्रेसेज), नोसोत्रोस देसीमोस नो (हम कहते हैं नहीं, वी से नो), लास पालाब्रास आंदाँतेस (चलते हुए शब्द, वाकिंग वर्ड्स), एल फुतबोल आ सोल इ सोंब्रा (धूप–छाँव में फुटबॉल, सॉकर इन सन एण्ड शैडो), पातास आरीबा : एस्कुएला देल मुंदो आल रेवेस (उलटी दुनिया की पाठशाला, अपसाइड डाउन : अ प्रीमियर फॉर द लुकिंग ग्लास वर्ल्ड), बोकास देल तिएंपो (वक्त की आवाजें, वॉयसेज ऑफ टाइम), एस्पेखोस (आईने, मिरर्स), लोस इखोस दे लोस दिआस (तारीख की औलादें, चिल्ड्रेन ऑफ द डेज) शामिल हैं।