1
आग
उतनी ही होनी चाहिए थी
जिसको घेरा जा सके,
जिसके निकट
बिना डरे जाया जा सके,
जिसको ले जाया जा सके
किसी डरे हुए के पास
हिम्मत बंधाने के लिए,
जो ठेहुनों और गालों तक
केवल आँच भर पहुँचे
और जिसमें इतना विश्वास हो
कि उसके हवाले की जा सकें
आटे की लोइयाँ, भुट्टे और आलू!
आग
उतनी ही होनी चाहिए थी
जिसको देखा जा सके निर्निमेष
और जिसको
आशापूर्ण थकान से लदी
फूँक मारकर बुझाया जा सके!
2
इंसानों ने
जानवरों को डराने के लिए
आग खोजी
अब आग
जानवरों के हाथ में है,
और जो नहीं है जानवर
वो डरा हुआ है।
3
मेरी और तुम्हारी आग में बहुत फ़र्क़ है,
मेरी आग लगायी हुई नहीं
जलायी हुई है।
उसके रंग में भय नहीं,
मृदु आमन्त्रण है।
तुम्हारी आग के उलट
जीवनदायी है उसका ताप,
मुँह तोपे आदमियों के नारों से नहीं
अपितु उसका परिचय
अलाव की लकड़ी और ठिठुरते ठेहुनों से है।
मेरी आग तुम्हारी आग से बहुत भिन्न है,
आदमी लौटते हैं मेरी आग से
गर्म, उनींदे और जीवित।