लड़की सर को झुकाए बैठी
काफ़ी के प्याले में चमचा हिला रही है
लड़का हैरत और मोहब्बत की शिद्दत से पागल
लाँबी पलकों के लर्ज़ीदा सायों को
अपनी आँख से चूम रहा है
दोनों मेरी नज़र बचा कर
इक दूजे को देखते हैं, हँस देते हैं

मैं दोनों से दूर
दरीचे के नज़दीक
अपनी हथेली पर अपना चेहरा रखे
खिड़की से बाहर का मंज़र देख रही हूँ
सोच रही हूँ
गए दिनों में हम भी यूँही हँसते थे…

परवीन शाकिर
सैयदा परवीन शाकिर (नवंबर 1952 – 26 दिसंबर 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं। वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है।