आजकल प्रेम
शब्दकोश का इतराया हुआ वो शब्द है
जिसे कविताओं ने सबसे ज़्यादा सर चढ़ाया है।
मैं
प्रेम पर लिखी सब कविताओं का
आज खुले आम बहिष्कार करता हूँ
और प्रेम से जुड़े हर शब्द पर
हलफ़नामे में ऐतराज़ करता हूँ।
मैं तुमसे मुलाकात के लिए तरसा
मगर ज़मीन के हर हिस्से पर इसे वर्जित कहा गया
मैं लेकर आया मेरे मनुष्य होने के प्रमाण
किन्तु प्रमाण जाति और धर्म का माँगा गया
मैंने केदारनाथ सिंह की कविता का वाचन किया
कि दुनिया को हाथ सा गर्म और सुन्दर होना चाहिए
दुनिया गर्म हो गयी और
मेरी सूरत बदलकर मुझे सुन्दर बनाया गया।
प्रेम की विधाओं को अव्यक्त कहते ही
मेरी अभिव्यक्ति पर एक प्रश्नचिह्न लगाया गया
मैंने कविताओं में तुम्हें पुकारने का साहस जुटाया
और प्रेम कविता लिखने पर अभियोग चलाया गया
मैं समाज के संवैधानिक कटघरे में
तेरी गवाही की प्रतीक्षा में वर्षों से खड़ा हूँ
मेरे पक्ष में यदि तुम एक प्रेम कविता भी गुनगुना लोगी
तो मैं
दूसरे हलफ़नामे पर ऐतराज़ वापस ले लूँगा।