वही है ज़िन्दा
गरजते बादल
सुलगते सूरज
छलकती नदियों के साथ है जो
ख़ुद अपने पैरों की धूप है जो
ख़ुद अपनी पलकों की रात है जो
बुज़ुर्ग सच्चाइयों की राहों में
तज्रबों का अज़ाब है जो
सुकूं नहीं इज़तिराब है जो
वही है ज़िन्दा
जो चल रहा है
वही है ज़िन्दा
जो गिर रहा है, सँभल रहा है
वही है ज़िन्दा
जो लम्हा-लम्हा बदल रहा है
दुआ करो, आसमाँ से उस पर कोई सहीफ़ा
उतर न आये
खली फ़ज़ाओं में
आख़री सच का ज़हर फिर से बिखर न जाये
जो आप अपनी तलाश में है
वोह देवता बनके मर न जाये।
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