‘Aamad’, a poem by Niki Pushkar
इतने बेखटके आने का प्रयोजन…?
कोई सम्बोधन,
एक पुकार तो लगाते
इतनी चुप आमद पर
कोई कैसे सतर्क होता
मुझे ज़रा भी भान न हुआ
कब तुम्हारे संदेशे
मेरे एकांत से बतियाने लगे,
वर्षों की अनजानी प्रतीक्षाऐं
गंतव्य को लालायित हो उठीं,
मन का कोई सिरा तुम्हारे वजूद से
मिलने को आतुर रहने लगा
यह सब इतना बे-आवाज़ हो रहा था
मुझे तनिक भी शुबहा न हुआ…
ऐसा भी कोई करता है क्या….?
तुम्हें एक दस्तक,
कोई खड़का तो देना चाहिए था
अब मैं इसका क्या करूँ कि
मेरे एकांत को रोज़ तुमसे बतियाना है
यूँ ही बेमतलब रोज़ तुमसे मिलना है…
26/09/2019