‘Aana’, a poem by Kedarnath Singh
आना
जब समय मिले,
जब समय न मिले
तब भी आना
आना
जैसे हाथों में
आता है जांगर,
जैसे धमनियों में
आता है रक्त,
जैसे चूल्हों में
धीरे-धीरे आती है आँच,
आना…
आना जैसे बारिश के बाद
बबूल में आ जाते हैं
नए-नए काँटे
दिनों को
चीरते-फाड़ते
और वादों की धज्जियाँ उड़ाते हुए
आना
आना जैसे मंगल के बाद
चला आता है बुध,
आना…
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