‘Aandhi’, Hindi Kavita by Vijay Rahi
बचपन में एक गीत सुना था
हमने काकी के मुँह से…
“आँधी आई मेह आयो,
बड़ी बुआ को जेठ आयो”
वास्तव में ये गीत नहीं था,
मौखिक छेड़खानी थी।
काकी हँसती-गाती रहती,
बुआ भी संग में हँसती रहती।
बच्चे भी दोहराते रहते, और नाचते-गाते रहते।
आँधी में जो उड़ती धूल,
वो सब उसमें नहाते रहते।
वो बच्चे कभी चले जाते
आम और इमली के पेड़ों के नीचे
और इंतज़ार करते रहते
कि रामजी महाराज गिरायेंगे,
उनके लिए आम और इमलियाँ।
कुछ बच्चे जो दूर खड़े हैं,
वो थोड़े-से और बड़े है।
वो खेलते हैं हॉकी, क्रिकेट और कबड्डी
वो खेलते रहते हैं भरी आँधियों में भी क्रिकेट
कई बार कचकड़ा की गेंद चली जाती आँधी के साथ दूर
और गुम हो जाती चरागाहों में कहीं
तो उनके पास बचता
आपसी दोषारोपण और लात-घूसों का खेल।
कुछ बच्चे ऐसे भी हैं उनमें,
जो थोड़े से सयाने हो गए हैं।
हालाँकि वो इतने भी सयाने नहीं हुए
जितना वो अपने मन में समझते हैं।
वो जितने सयाने हैं, उतने ही नादान भी हैं।
वो निकल पड़ते हैं आँधी के ग़ुबार में घर से
और मिलते हैं ख़ूब मचकर अपनी भाएली से
निकालते हैं अपने मन का ग़ुबार।
आँधी डटती है, आसमान छँटता है,
निकलती हैं औरतें पनघट के लिए
कुएँ के पास फैले आँकडों पर मिलता है
एक चुन्नी और एक तौलिया
वहीं पारे के पास मिलती है
नयी नकोर दो जोड़ी बैराठी की चप्पलें।
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