‘Aankh’, a poem by Harsha Dube

रोशनी सर्वत्र व्यापित
सत्य निरन्तर उपलब्ध
प्रकरण बस ये हैं…
मेरे भीतर एक ‘आँख’ हो।

हर्षा दुबे
यूं तो है जो सब सच है तू बस सच के हालात न पूछना