कविता आँख By हर्षा दुबे - November 2, 2019 Share FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmailPinterestTumblr ‘Aankh’, a poem by Harsha Dube रोशनी सर्वत्र व्यापित सत्य निरन्तर उपलब्ध प्रकरण बस ये हैं… मेरे भीतर एक ‘आँख’ हो। RELATED ARTICLESMORE FROM AUTHOR किताब अंश मैं इस बात से भी कम्फ़र्टेबल हूँ कि मुझे नहीं पता अनुवाद चेन च्येन वू की कविताएँ अनुवाद बुल्गारियाई कवयित्री एकैटरीना ग्रिगरोवा की कविताएँ अनुवाद नेओमी शिहैब नाय की कविता ‘जो नहीं बदलता, उसे पहचानने की कोशिश’ अनुवाद विनीता अग्रवाल की कविताएँ