बात उस समय की है जब मैं एक ट्रेनिंग पर था। उस बैच में हम लोगों के साथ एक लेडी ऑफ़िसर भी थीं। क्लास में पहले से निर्धारित सीट पर ही बैठने की व्यवस्था थी। मेरे बग़ल में जो मेरे मित्र ऑफ़िसर बैठते थे, उनसे कुछ ही दिनों में अच्छा परिचय हो गया था। वो बहुत वाक्पटु थे, बहुत ज्ञानी और आत्मविश्वास इतना कि बोलने में उनका आत्मविश्वास झलकता नहीं था, बल्कि जाम की तरह छलकता था।

उनकी एक आदत मैंने ग़ौर की—कुछ भी, कहीं भी, कैसा भी कमेंट करने की। मतलब अगर कोई व्यक्ति या विषय उनकी नज़र में चढ़ जाए तो थोड़ी-थोड़ी देर में उस पर कमेंट की फुलझड़ी छोड़ते रहते थे।

उस दिन ‘महिला-सशक्तिकरण’ पर उनकी काक-दृष्टि पड़ गयी थी। टी-ब्रेक के दौरान मुझसे बोले—

“यार! लड़कियों के लिए ज़िन्दगी में बड़ा आराम है। देखो न! जहाँ जाती हैं, वहाँ उन्हें अटेंशन मिलती है। वायवा में उन्हें मार्क्स ज़्यादा मिलते हैं। बस में सीट उनके लिए रिज़र्व रहती है। मेट्रो में तो पूरी बोगी ही उनके लिए रिज़र्व रहती है। कहीं लाइन में नहीं लगना पड़ता। पोस्टिंग अच्छी लोकेशन में मिलती है। सारे क़ानून भी उन्हें ही सपोर्ट करते हैं।”

अब तक हम लोग क्लास में वापस आकर अपनी-अपनी सीट्स पर बैठ चुके थे। इंस्ट्रक्टर अपना लैपटॉप खोल के पढ़ाने की तैयारी में जुटे थे। पर मित्र महोदय ‘महिलाएँ पहले से ही कितना सशक्त हैं’ विषय पर अपना प्रवचन दिए जा रहे थे। इस विषय पर मेरी चुप्पी उन्हें प्रवचन जारी रखने के लिए ज़रूरी ऊर्जा दिए जा रही थी। वो आगे कहते जा रहे थे—

“देखो न! इन्हें छुट्टियाँ भी हमसे ज़्यादा मिलती हैं। मैटरनिटी के नाम पर इन्हें 180 दिन, हमें पैटर्निटी के नाम पर सिर्फ़ 15 दिन। सैलरी बराबर, पर काम हमसे कम। हम देर रात तक बैठकर काम करते, ये शाम होते ही घर चली जाती हैं। और तो और अब तो IIM में हमसे कम परसेंटाइल होने पर भी, जेंडर डाइवर्सिटी के नाम पर सीट लेकर उड़ जाती हैं। यार! कुछ भी कहो, आज के समय में लड़कियों को बड़ा फ़ायदा है।”

अब मैंने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उनसे कहा, “हम्म। आपकी सब बात ठीक ही है। अब आपके आगे मैं क्या ही कहूँ। इतना ही कह सकता हूँ कि आज के समय में अगर लड़की होने में इतना ही फ़ायदा है तो मेरी भी भगवान से यही प्रार्थना है कि अगले जन्म में आप लड़की के रूप में पैदा हों।”

इतना सुनते ही उनके चेहरे की भाव-भंगिमा पर ग़ुस्से के बादल घिर आए और वो तुरन्त बोले, “अमित भाई! इस जन्म में इतने भी बुरे काम नहीं किए कि अगले जन्म में मैं लड़की बनूँ।”

मैंने बोला, “भाई, मैंने ऐसा कब कहा… मैं तो ऐसा इसलिए कह रहा था कि इस जन्म में लड़के के रूप में आपने बहुत दुःख झेले हैं और आपने ही समझाया कि लड़कियों को आज के समय में बड़ा सुख है, बड़ा फ़ायदा है, इसलिए अब तो बस ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि आपका अगला जन्म सुधर जाए।”

इस पर वो तपाक से बोले, “पर मैं तो लड़का हूँ। मरने पर आत्मा सिर्फ़ शरीर बदलती है। जेंडर थोड़े न बदलती है।”

अब मैंने किसी हॉरर मूवी के सीन की तरह, उनके पास जाकर धीरे से उनके कान में कहा, “हम्म… ओजी! आत्मा का जेंडर भी बदलता है। बस प्रार्थना करने की ज़रूरत है। देखो… महाभारत में भीष्म अम्बा, अम्बिका, और अम्बालिका नाम की तीन राजकुमारियों को उनके स्वयंवर से उठा लाए थे, अपने सौतेले भाइयों से शादी कराने के लिए। पर भीष्म की गणित थोड़ी कमज़ोर थी। भाई थे दो, पर राजकुमारियाँ उठा लाए तीन। ख़ुद तो आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्रण ले चुके थे। फिर क्या, तीसरी ने आत्महत्या कर ली। पर मरने से पहले उसने प्रार्थना की कि अगले जन्म में वो भीष्म से बदला ले सके। और भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली। उस अबला स्त्री की आत्मा, अगले जन्म में पुरुष रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई। यही पुरुष योद्धा शिखंडी था, जो महाभारत में भीष्म की मृत्यु का कारण भी बना। इसलिए कह रहा हूँ कि अगर प्रार्थनाएँ मन से की जाएँ, तो आत्माओं का जेंडर भी बदल सकता है।”

इस पर वो बोले, “भाई! क्यों डरा रहा है! मैं तो मज़ाक़ कर रहा था। मेरी आत्मा पुरुष ही रहेगी।”

बातचीत: 'मिसॉजिनि क्या है?'

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