भाषा के शिक्षक ने
पारम्परिक कौशल के साथ
कार्य-कारण सम्बन्धों को साधना सिखाया
कुछ शब्द
जो हर फ़्रेम में फ़िट बैठते
उन्हें रटने की बात कही
इस विश्वास के साथ कि—
हमारे देश में बग़ैर आवेदन के कुछ भी नहीं होता
और आवेदन लिखना बच्चों का खेल नहीं है
उन्होंने एक सूत्र दिया
जिसका प्रयोग
सफ़ेद कोरे काग़ज़ पर बहुत ही चिकनाई के साथ करना होता था

इस तरह
अपनी भाषा
और अपनी लिखाई में
मजबूर, लाचार और दरिद्र दिखने का पहला अभ्यास था—
आवेदन लिखना

यह अभ्यास बदस्तूर जारी है
आज मैं चेहरे से भी दरिद्र दिखने लगा हूँ
सफ़ेद ख़ाली काग़ज़ पर
सिर झुकाकर
जब लिख रहा होता हूँ कोई आवेदन
मेरे ख़याल में जूतों की एक जमात तैरती है

आवेदन लेकर
इधर-उधर भटकते हुए
मैं प्रायः जूतों के बारे में ही सोचता हूँ
और अपना जूता बांधते हुए
मुझे अक्सर महसूस होता है, कि—
मेरी आत्मा बंध रही है!

गौरव भारती की कविता 'हम मारे गए'

किताब सुझाव:

गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार। इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408