अब तुम नौका लेकर आए,
जब लहरों में बहते-बहते हम तट से टकराए!

जब सब ओर अतल सागर था
सतत डूब जाने का डर था
तब जाने यह प्रेम किधर था
ये निःश्वास छिपाए!

अब जब सम्मुख ठोस धरा है
छूट चुका सागर गहरा है
मिला निमन्त्रण स्नेह भरा है-
“लो, हम नौका लाए!”

क्या यह नाव लिए निज सिर पर
नाचें हम अब थिरक-थिरककर
धन्यवाद दें तुम्हें, बन्धुवर
दोनों हाथ उठाए?

अब तुम नौका लेकर आए
जब लहरों में बहते-बहते हम तट से टकराए!