अभी मैं प्रेम से भरी हुई हूँ
पूरी दुनिया शिशु-सी लगती है
मैं दे सकती हूँ किसी को कुछ भी
रात-दिन वर्ष-पल अनन्त

अभी तारे मेरी आँखों में चमकते हैं
मर्म से उठते हैं कपास के फूल
अंधकार अभी सिर्फ़ मेरे केशों में है

अभी जब मैं प्रेम करती हूँ
दुनिया में भरती हूँ रंग
जंगलों पर बिखेरती हूँ हँसी
समुद्र को सौंपती हूँ उछाल
पत्थरों में भरती हूँ शान्ति!

अनीता वर्मा की कविता 'स्त्री का चेहरा'

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