कविता संग्रह ‘सिर्फ़ पेड़ ही नहीं कटते हैं’ से
तार टेलीफ़ोन के खम्भों के लिए
हर बार मैं काटा गया हूँ
मकानों की नींव के लिए
मेरी जड़ें कटती रही हैं
सबके पास अपनी-अपनी कुल्हाड़ियाँ हैं
और मैं एक मासूम पेड़ हूँ
पतंग उड़ाने और
तितलियों के पर गिनने की
यह उम्र नहीं
बेकारी के इन दिनों में
मैं एक अधूरा कथानक
और बीस-पच्चीस की कच्ची-पक्की उम्र हूँ
चौराहों पर हुई दुर्घटनाओं
और घरों में लड़े गए युद्धों का हाल
मैं जानता हूँ
जानता हूँ यहाँ
कैसे मारा जाता है अभिमन्यु
कैसे चीरी जाती है द्रौपदी
और आधा झूठ कैसे कहलाता है धर्मराज!
मत तलाशो माँ!
मेरे हाथों में लम्बी उम्र की रेखा
मैं तुम्हारे पेट से
आत्महत्या की तरकीबें सीखकर आया हूँ!