अच्छा है उनसे कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए
हम हैं, तेरा ख़याल है, तेरा जमाल है
इक पल भी अपने आप को तन्हा किया न जाए
उठने को उठ तो जाएँ तेरी अंजुमन से हम
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए
उनकी रविश जुदा है, हमारी रविश जुदा
हम से तो बात-बात पे झगड़ा किया न जाए
हर-चंद एतिबार में धोखे भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए
लहजा बना के बात करें उनके सामने
हम से तो इस तरह का तमाशा किया न जाए
ईनाम हो, ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ
जब तक सिफ़ारिशों को इकट्ठा किया न जाए
इस वक़्त हमसे पूछ न ग़म रोज़गार के
हम से हर एक घूँट को कड़वा किया न जाए!
जाँ निसार अख़्तर की ग़ज़ल 'अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं'