‘Adharmi’, a poem by Harshita Panchariya

तुमने कहा था
कि धर्म और ईश्वर में
एक धागे जितनी महीन परत है।
इतनी महीन परत
कि पूर्वाग्रहों का चश्मा
चढ़ाने पर
वह अदृश्य प्रतीत
होने लगती है
पर मैंने कहा था,
कि धर्म और ईश्वर में
ज़मीन आसमान सी
दूरी है
अगर ईश्वर आसमान है
तो उसके हाथ से छूटना
यानी
औंधे मुँह ज़मीन
पर गिरना।

ख़ैर,
फिर एक दिन
चुनने के अंतिम विकल्पों
में, उन दो विकल्पों में
से एक को चुनना
शायद सृष्टि को बचा
सकता था
तुम्हारे धर्म ने
मुझे ‘ईश्वर’ चुनने को कहा,
पर मैंने चुनी
‘मनुष्यता’

शायद तुम्हारे लिए
मैं अधर्मी हूँ,
और इसलिए
आसमान से
मुझे ज़मीन बहुत छोटी
दिखायी पड़ती है।

यह भी पढ़ें:

गोपालदास नीरज की कविता ‘धर्म है’
राहुल सांकृत्यायन का लेख ‘धर्म और घुमक्कड़ी’
अमृतलाल नागर की कहानी ‘धर्म संकट’
जनकराज पारीक की कविता ‘रचनाधर्मी’

Recommended Book: