घर की कच्ची दीवारों में कभी गूँजी नहीं कोई प्रार्थना
यहाँ सुबह-शाम ज़ोर से गानी होती हैं प्रार्थनाएँ
ताकि मास्टरजी को लगे बच्चे संस्कृति से जुड़ रहे हैं
आदिवासी बच्चे हैं उनको रहना है भगवान भरोसे ही।

घर के आँगन में कभी नहीं साधी
योग-मुद्रा पेट सिकोड़ने की
मास्टरजी यहाँ अपना थुलथुल पेट अन्दर खींचते हैं
सभ्यता की हवा बाहर निकल जाती है दुर्गंध के साथ
आदिवासी बच्चे हँसने के अपराध में मुर्ग़े बन जाते हैं।

घर में दूध और नाश्ते के चोंचले नहीं थे
यहाँ कढ़ाव-भर पनियल दूध रोज़ उबलता है
मास्टरजी रजिस्टर में दूध, शक्कर, नाश्ते और
खाने की जितनी खपत चढ़ाते हैं वह
बढ़े हुए बजट से ज़्यादा हो जाती है हमेशा
कमेटी का दाना-पानी पहुँच जाता है समय पर
कमेटी मान लेती है आदिवासी बच्चों की खुराक
तगड़ी होती है।

हम रोज़ ही घिसी-फटी यूनिफ़ॉर्म में स्कूल जाते हैं
हमें पहचान बताने की ज़रूरत नहीं होती
ब्लॉक शिक्षा अधिकारी जानते हैं
आदिवासी बच्चे कभी भी, कहीं भी धूल में लोट जाते हैं
कपड़ा है मैला होगा, घिसेगा, फटेगा भी।

किताबें, कापियाँ, बस्ता बराबर मिलते हैं
सुना है ऊपर वाले ऊपर ही ऊपर सुलटा लेते हैं टेण्डर
वे आते हैं उपहार बाँटने
हम उनके चरण छूते हैं, फ़ोटो खिंचवाते हैं और
आशीर्वाद पाते हैं – आदिवासी बच्चे अमर रहें।

नई चादरें और बिस्तर
सालों-साल टेंट हाउस वाला बदल लेता है
उसका और होस्टल का मार्का एक जैसा है
हम तो डट कर खाते हैं, पसीने-पसीने हो खेलते हैं
देवी-देवताओं को याद करते-करते सो जाते हैं
कोई नहीं कहता पुराने चादर और कम्बल बास मार रहे हैं
आदिवासी बच्चे हैं, बास तो इनके शरीर में बसी है।

Book by Dharmpal Mahendra Jain:

Is Samay Tak - Dharmpal Mahendra Jain

धर्मपाल महेंद्र जैन
टोरंटो (कनाडा) जन्म : 1952, रानापुर, जिला – झाबुआ, म. प्र. शिक्षा : भौतिकी; हिन्दी एवं अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर प्रकाशन : छः सौ से अधिक कविताएँ व हास्य-व्यंग्य प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, आकाशवाणी से प्रसारित। 'कुछ सम कुछ विषम', और ‘इस समय तक’ कविता संकलन व 'इमोजी की मौज में', "दिमाग़ वालो सावधान" और “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है?” व्यंग्य संकलन प्रकाशित। संपादन : स्वदेश दैनिक (इन्दौर) में 1972 में संपादन मंडल में, 1976-1979 में शाश्वत धर्म मासिक में प्रबंध संपादक। संप्रति : सेवानिवृत्त, स्वतंत्र लेखन। दीपट्रांस में कार्यपालक। पूर्व में बैंक ऑफ इंडिया, न्यू यॉर्क में सहायक उपाध्यक्ष एवं उनकी कईं भारतीय शाखाओं में प्रबंधक। स्वयंसेवा : जैना, जैन सोसायटी ऑफ टोरंटो व कैनेडा की मिनिस्ट्री ऑफ करेक्शंस के तहत आय एफ सी में पूर्व निदेशक। न्यू यॉर्क में सेवाकाल के दौरान भारतीय कौंसलावास की राजभाषा समिति और परमानेंट मिशन ऑफ इंडिया की सांस्कृतिक समिति में सदस्य। तत्कालीन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स में परीक्षक।