Art: Shahid Rassam ग़ज़ल ऐसा भी कोई सपना जागे By नासिर काज़मी - May 8, 2020 Share FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmailPinterestTumblr ऐसा भी कोई सपना जागे साथ मिरे इक दुनिया जागे वो जागे जिसे नींद न आए या कोई मेरे जैसा जागे हवा चली तो जागे जंगल नाव चले तो नदिया जागे रातों में ये रात अमर है कल जागे तो फिर क्या जागे दाता की नगरी में ‘नासिर’ मैं जागूँ या दाता जागे। Book by Nasir Kazmi: RELATED ARTICLESMORE FROM AUTHOR ग़ज़ल आज तो मन अनमना कविता मेहनतकशों का गीत कविता मन के पास रहो कविता धिक्कार है ग़ज़ल दिल में इक लहर सी उठी है अभी