ऐसे वक़्त में,
जब नब्ज़ ढूँढने पर मालूम नहीं पड़ रही,
और साँसे भी किसी हादसे की ओट में उखड़ जाने की फ़िराक में हैं,
जब संगी-साथी दुनिया की दर्शक दीर्घा में,
मेरे जीवन का, रंगमंच के नाटक की भाँति लुत्फ़ उठा रहे हों,
जब मेरी नाकामयाबियाँ मुझे किसी बिगड़ैल बच्चे की तरह हर पल मुँह चिढ़ा रही हों,
जब सड़क पर पड़ा हर पत्थर
मुझे और सिर्फ मुझे ठोकर मारने पर आमादा हो,
जब मुस्कुराहटें लम्हा दर लम्हा
मेरी गिरफ्त से ढीली पड़ रही हों,
जब जेब हज़ार बार टटोलने पर भी
सिर्फ शून्य हाथ लग रहा हो,
जब सपने
पंख फ़ैलाने से पहले ही मुरझाये जा रहे हों,
और आँखों में हर पल
खालीपन नाच रहा हो,
जब दुनिया का सारा संगीत बेस्वाद सा लग रहा हो,
और तरह-तरह के पकवान भी अनमने से लग रहे हों,
जब नींदें
आँखों से बिचक कर करवटों में बदल गयी हों,
और हंसी ठिठोली कानो में कड़वाहट घोल दे रही हो,
जब वक़्त के पिंजड़े में हालात फड़फड़ा रहे हों
और मन
ठहरा हुआ हो समय के किसी चौराहे पर
किसी निठल्ले आदमी की तरह
ऐसे वक़्त में
मेरी ज़िंदगी में तुम्हारा ठहर जाना..
कितना नामुमकिन-सा लगता है।

© ऋतु निरंजन