तुमसे भी छिपा सकूँ जो मैं
ऐसी तो कोई बात नहीं जीवन में।
मन दिया तुम्हें मैंने ही अपने मन से
रंग दिया तुम्हें मैंने अपने जीवन से
बीते सपनों में आए बिना तुम्हारे
ऐसी तो कोई रात नहीं जीवन में।
तुमसे भी छिपा सकूँ जो मैं
ऐसी तो कोई बात नहीं जीवन में।
जल का राजा सागर कितना लहराया
पर मेरे मन की प्यास बुझा कब पाया
जो बूँद-बूँद बन प्यास तुम्हारी पी ले
ऐसी कोई बरसात नहीं जीवन में।
तुमसे भी छिपा सकूँ जो मैं
ऐसी तो कोई बात नहीं जीवन में।
कलियों के गाँवों में भौंरे गाते हैं
गाते-गाते वह अक्सर मर जाते हैं
मरने वाले को जो मरने से रोके
ऐसी कोई सौगात नहीं जीवन में।
तुमसे भी छिपा सकूँ जो मैं
ऐसी तो कोई बात नहीं जीवन में।
रमानाथ अवस्थी की कविता 'हम-तुम'