‘Alan’, a poem by Vishnu Khare
[सीरियाई बच्चे ‘आलैन’ के लिए, जिसकी डूबने से मृत्यु हुई थी और उसकी तस्वीर ने सारी दुनिया को विचलित किया था]
हमने कितने प्यार से नहलाया था तुझे
कितने अच्छे साफ़ कपड़े पहनाए थे
तेरे घने काले बाल सँवारे थे
तेरे नन्हें पैरों को चूमने के बाद
जूतों के तस्मे मैंने ही कसे थे
ग़ालिब ने सताने के लिए तेरे गालों पर गीला प्यार किया था
जिसे तूने हमेशा की तरह पोंछ दिया था
और अब तू यहाँ आकर इस गीली रेत पर सो गया
दूसरे किनारे की तरफ़ देखते हुए तेरी आँख लग गई होगी
जो बहुत दूर नहीं था
जहाँ कहा गया था तेरे बहुत सारे नये दोस्त तेरा इंतज़ार कर रहे हैं
उनका तसव्वुर करते हुए ही तुझे नींद आ गई होगी
कश्ती में कितने ख़ुश थे तू और ग़ालिब
अपने बाबा को उसे चलाते देखकर
और अम्मी के डर पर तुम तीनों हँसते थे
तुम जानते थे नाव और दरिया से मुझे कितनी दहशत थी
तू हाथ नीचे डालकर लहरों को थपकी दे रहा था
और अब तू यहाँ आकर इस गीली रेत पर सो गया
तुझे देखकर कोई भी तरद्दुद में पड़ जाएगा कि इतना ख़ूबरू बच्चा
ज़मीं पर पेशानी टिकाए हुए यह कौन से सजदे में है
अपने लिए हौले-हौले लोरी गाती और तुझे थपकियाँ देती
उन्हीं लहरों को देखते हुए तेरी आँखें मुँदी होंगी
तू अभी-भी मुस्कराता-सा दिखता है
हम दोनों तुझे खोजते हुए लौट आए हैं
एक टुक सिरहाने बैठेंगे तेरे
नींद में तू कितना प्यारा लग रहा है
तुझे जगाने का दिल नहीं करता
तू ख़्वाब देखता होगा कई दूसरे साहिलों के
तेरे नये-नये दोस्तों के
तेरी फूफी तीमा के
लेकिन तू है कि लौटकर इस गीली रेत पर सो गया
तुझे क्या इतनी याद आयी यहाँ की
कि तेरे लिए हमें भी आना पड़ा
चल अब उठ छोड़ इस रेत की ठण्डक को
छोड़ इन लहरों की लोरियों और थपकियों को
नहीं तो शाम को वह तुझे अपनी आग़ोश में ले जाएँगी
मिलें तो मिलने दे फूफी और बाबा को रोते हुए कहीं बहुत दूर
अपन तीनों तो यहीं साथ हैं न
छोड़ दे ख़्वाब नये अजनबी दोस्तों और नामालूम किनारों के
देख ग़ालिब मेरा दायाँ हाथ थामे हुए है, तू यह दूसरा थाम
उठ हमें उनींदी हैरत और ख़ुशी से पहचान
हम दोनों को लगाने दे गले से तुझे
आ तेरे जूतों से रेत निकाल दूँ
चाहे तो देख ले एक बार पलटकर इस साहिल उस दूर जाते उफ़क़ को
जहाँ हम फिर नहीं लौटेंगे
चल हमारा इंतज़ार कर रहा है अब इसी ख़ाक का दामन।
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