‘Albatta Prem’, a poem by Joshnaa Banerjee Adwanii
ईश्वर ने सोचा
ये सुन्दर है
नदी ने सोचा
ये पीछे छूटी स्मृतियों की टीस
पर्वत ने सोचा
ये गर्व से नीचे देख पाने की कला
मल्लाह ने सोचा
ये आँधियों के लिये गाया गया विदागीत
चिड़िया ने सोचा
ये आकाश की छाती का बहुवचन
आदमी ने सोचा
जीवन काटा जा सकता है
स्त्री कुछ सोच ना सकी
धम्म से गिर पड़ी
एक स्त्री के गिरने से
ब्रह्माण्ड का कद कितना ऊँचा हुआ
प्रेम ने
इस ब्रह्माण्ड को सौ सम्भावनाऐं दीं
और उस पर स्त्रियों को दे दीं
नर्म हथेलियाँ
दोनों हथेलियों को मिला
गाल के नीचे लगाकर स्त्रियों को अब
सो जाना चाहिये
ये नर्म हथेलियाँ
कोई गुनाह ना कर बैठें…
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