इलाहाबाद में हर-सू हैं चर्चे
कि दिल्ली का शराबी आ गया है
ब-सद आवारगी या सद तबाही
ब-सद ख़ाना-ख़राबी आ गया है
गुलाबी लाओ, छलकाओ, लुंढाओ
कि शैदा-ए-गुलाबी आ गया है
निगाहों में ख़ुमार-ए-बादा ले कर
निगाहों का शराबी आ गया है
वो सरकश रहज़न-ए-ऐवान-ए-ख़ूबाँ
ब-अज़्म-ए-बारयाबी आ गया है
वो रुस्वा-ए-जहाँ नाकाम-ए-दौराँ
ब-ज़ोम-ए-कामयाबी आ गया है
बुतान-ए-नाज़-फ़रमा से ये कह दो
कि इक तर्क-ए-शहाबी आ गया है
नवा-संजान-संगम को बता दो
हरीफ़-ए-फ़ारयाबी आ गया है
यहाँ के शहर यारों को ख़बर दो
कि मर्द-ए-इंक़िलाबी आ गया है

मजाज़ लखनवी
मजाज़ लखनवी (पूरा नाम: असरार उल हक़ 'मजाज़', जन्म: 19 अक्तूबर, 1911, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 5 दिसम्बर, 1955) प्रसिद्ध शायर थे। उन्हें तरक्की पसन्द तहरीक और इन्कलाबी शायर भी कहा जाता है। महज 44 साल की छोटी-सी उम्र में उर्दू साहित्य के 'कीट्स' कहे जाने वाले असरार उल हक़ 'मजाज़' इस जहाँ से कूच करने से पहले अपनी उम्र से बड़ी रचनाओं की सौगात उर्दू अदब़ को दे गए शायद मजाज़ को इसलिये उर्दू शायरी का 'कीट्स' कहा जाता है, क्योंकि उनके पास अहसास-ए-इश्क व्यक्त करने का बेहतरीन लहजा़ था।