ऐसे लम्हे जब कह नहीं पाते तुम्हारा नाम… लेकिन वो होठों के अलावा हर जगह लिखा होता है, आंखों में, उंगलियों में, दिल में, दिमाग में, दीवारों पर हर जगह एक तुम्हारा ही नाम होता है…

पत्तियाँ सरसराती हैं, सरी दोपहर, मद्धम लय में बहती है तुम्हारी याद, नसों में..

मैं मुराकामी की उस किताब से, खोल कर उड़ा देना चाहती हूँ वो अमलतास, जो तुम्हारे शहर से गुज़रते, तुम्हारी याद में उठाया था, ठीक उसी पन्ने पर जहां उन्होंने कहा था कि “ज़िन्दगी छोटी है, लेकिन फिर भी हमारा दूसरा टुकड़ा छिटक कर उस पार जाने की संभावनाओं से भरा हुआ है जिधर हम अपनी मर्ज़ी से जी सकें…”