हाड़ की देही उज्जल रंग,
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना ख़ून किया,
वा का सिर क्यों काट लिया।

– नाख़ून

हर सिर पेड़ सुहावन पात,
क्यों बस साम और रात।
जब नांहि से वा का नांव,
बूझ पहेली छोड़ो गाँव।

– गुल-ए-लाला

हिन्दी में नारी कहें,
फ़ारसी में नर कहलाए।
अगन तो निबेड़े नहीं,
पर अपही से जल जाए।

– नदी

है वो नारी सुन्दर नार,
नार नहीं पर वो है नार।
दूर से सबको छब दिखलावे,
हाथ किसी के क्यूँ न आवे।

– बिजली

नर नारी कहलाती है,
और बिन वर्षा जल जाती है।
पुरुख से आवे पुरुख में जाए,
न दी किसी ने बूझ बताए।

– नदी

नर नारी कहलाता है,
और नर-नारी को आता है।
गर ज़िन्दगी हो मर जाता है,
पर लाग़र सा कर जाता है।

– बुढ़ापा

वह पंछी है जगत में,
जो बसत भवें से दूर।
रेत को उनको बीना देखा,
दिन को देखा सूर।

– चमगादड़

मैं मोठी मोरे पिया अकास,
कैसे जाऊँ पी के पास।
बैरी लोग मुँह दिखावें,
पी चाहें तो आपी आवें।

– कबूतर

नारी में नारी बसे, नारी में नर दोए,
दो नर में नारी बसे, बूझे बिरला कोए।

– नथ

नारंगी रंगरेज़ की और रंगी है करतार,
सगरी दुनिया लेत है झून्टा नांव पुकार।

– नारंगी

अमीर ख़ुसरो
अबुल हसन यमीनुद्दीन अमीर ख़ुसरो (1253-1325) चौदहवीं सदी के लगभग दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि शायर, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित थाI स्वयं अमीर खुसरो ने आठ सुल्तानों का शासन देखा थाI अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया हैI वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फारसी में एक साथ लिखाI