हाड़ की देही उज्जल रंग,
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना ख़ून किया,
वा का सिर क्यों काट लिया।
– नाख़ून
हर सिर पेड़ सुहावन पात,
क्यों बस साम और रात।
जब नांहि से वा का नांव,
बूझ पहेली छोड़ो गाँव।
– गुल-ए-लाला
हिन्दी में नारी कहें,
फ़ारसी में नर कहलाए।
अगन तो निबेड़े नहीं,
पर अपही से जल जाए।
– नदी
है वो नारी सुन्दर नार,
नार नहीं पर वो है नार।
दूर से सबको छब दिखलावे,
हाथ किसी के क्यूँ न आवे।
– बिजली
नर नारी कहलाती है,
और बिन वर्षा जल जाती है।
पुरुख से आवे पुरुख में जाए,
न दी किसी ने बूझ बताए।
– नदी
नर नारी कहलाता है,
और नर-नारी को आता है।
गर ज़िन्दगी हो मर जाता है,
पर लाग़र सा कर जाता है।
– बुढ़ापा
वह पंछी है जगत में,
जो बसत भवें से दूर।
रेत को उनको बीना देखा,
दिन को देखा सूर।
– चमगादड़
मैं मोठी मोरे पिया अकास,
कैसे जाऊँ पी के पास।
बैरी लोग मुँह दिखावें,
पी चाहें तो आपी आवें।
– कबूतर
नारी में नारी बसे, नारी में नर दोए,
दो नर में नारी बसे, बूझे बिरला कोए।
– नथ
नारंगी रंगरेज़ की और रंगी है करतार,
सगरी दुनिया लेत है झून्टा नांव पुकार।
– नारंगी