अन्धेरे अकेले घर में
अन्धेरी अकेली रात।
तुम्हीं से लुक-छिपकर
आज न जाने कितने दिन बाद
तुमसे मेरी मुलाक़ात।
और इस अकेले सन्नाटे में
उठती है रह-रहकर
एक टीस-सी अकस्मात्
कि कहने को तुम्हें इस
इतने घने अकेले में
मेरे पास कुछ भी नहीं है बात।

क्यों नहीं पहले कभी मैं इतना गूँगा हुआ?
क्यों नहीं प्यार के सुध-भूले क्षणों में
मुझे इस तीखे ज्ञान ने छुआ
कि खो देना तो देना नहीं होता-
भूल जाना और, उत्सर्ग है और बात :
कि जब तक वाणी हारी नहीं
और वह हार मैंने अपने में पूरी स्वीकारी नहीं,
अपनी भावना, सम्वेदना भी वारी नहीं-
तब तक वह प्यार भी
निरा संस्कार है, संस्कारी नहीं।

हाय, कितनी झीनी ओट में
झरते रहे आलोक के सोते अवदात-
और मुझे घेरे रही
अन्धेरे अकेले घर में
अन्धेरी अकेली रात।

अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन् 1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।