ले चलो मुझे इस लोक से दूर कहीं
जहाँ निर्धन धनवानों को चुनते नहीं
जहाँ मूर्ख और पंगु नहीं बनते बुद्धिमान
जहाँ निर्बल स्त्रियों पर वीरता नहीं दिखाते शक्तिमान
ले चलो मुझे ऐसे लोक में
जहाँ बूढ़े अपनी माया फैलाए नहीं करते राजनीति
जहाँ ज़रूरी नहीं युवाओं के लिए
पार करना मगरमच्छों से भरी कोई नदी
ले चलो मुझे इस लोक से उस लोक में
जहाँ चल सकूँ अपने बनाए रास्ते के आलोक में!
ऋतुराज की कविता 'माँ का दुःख'