‘Ant-Aarambh’, a poem by Niki Pushkar

दुनिया गोल है
हर अन्त के पश्चात आरम्भ है
इस वृत्ताकार पथ पर चलते हुए
हमें लौटना ही होगा फिर वहीं,
जहाँ से शुरुआत की थी

हमें लौटना ही होगा फिर
अपने खेत-खलिहानों में
ताकि उपेक्षित पड़ी धरिनी
फिर से लहलहा उठे
हमें लौटना ही होगा
अपने जंगलों, नदियों, पहाड़ों में
ताकि बचा रहे जानवरों का घर
ताकि प्यासा न रहे समन्दर
ताकि नाच सके नन्हें पाँव
रिमझिम फुहार पर
ताकि गा सके कोयल मधुर कुहूक
और बची रहे
पपीहे की टेर

हमें लौटना ही होगा फिर
वीरान पड़े गाँव-घरों की ओर
ताकि उजड़े चौपाल फिर सज सकें
ताकि पुरखों की छत
गिरने से बच सके
ताकि पनघट फिर से
हँसने लगें
ताकि अन्तिम साँस लेती
दादी-नानी की कहानियाँ
फिर से जी उठें

हमें लौटना ही होगा
आधी आबादी संग
फिर हमार घरों की ओर
ताकि बचपन ममत्व पा सके
ताकि नई पौध कुण्ठा से बच सके
ताकि आधी आबादी
अतिरिक्त भार से बच सके
हाँ, हमें लौटना ही होगा वहीं,
जहाँ से हम शुरू हुए थे!

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