जब मयकदे से निकला मैं राह के किनारे
मुझसे पुकार बोला प्याला वहाँ पड़ा था,
है कुछ दिनों की गर्दिश, धोखा नहीं है लेकिन
इस धूल से न डरना, इसमें सदा सहारा।

मैं हार देखता था वीरान आस्माँ को
बोला तभी नजूमी मुझसे : भटक नहीं तू
है कुछ दिनों की गर्दिश, धोखा नहीं है लेकिन
जो आँधियों ने फिर से अपना जुनूँ उभारा।

मैं पूछता हूँ सबसे — गर्दिश कहाँ थमेगी
जब मौत आज की है दिकल हैं ज़िन्दगी के
धोखे का डर करूँ क्या, रुकना न जब कहीं है—
कोई मुझे बता दो, मुझको मिले सहारा!

रांगेय राघव
रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।