यदि तुम बहुत ज़्यादा प्रायोगिक हो
तो नहीं कर सकते तुम प्रेम किसी से
नहीं रह सकते सम्वेदनशील बहुत देर तक
नहीं कर सकते तुम प्रार्थना में यकीन
नहीं रख सकते तुम विश्वास किसी पर
कुछ तो हो, जो न होकर भी हो।
एक आँख के पीछे एक आँख होती है
एक कान के पीछे भी एक कान
एक जीभ के नीचे भी एक जीभ
हो सकता है तो तुम न मानो
परन्तु
यदि तुम कुछ देर के लिए
प्रायोगिक होना त्याग दो
तो मैं समझा सकता हूँ
अप्रायोगिकता में जीवन
और ये भी कि
प्रायोगिकता तो केवल एक भ्रम है
ठीक उसी तरह का
जिस तरह का तुमने
अप्रायोगिक को मान रखा है।