‘Apradh Bodh’, a poem by Poonam Sonchhatra
वक़्त बीत जाने पर मिलने वाला प्रेम
नहीं रह पाता उस गुलाब की कली के जैसा
जिसे बड़े जतन से
जीवन की बगिया में खाद और पानी के साथ
उगाया गया हो..
ये बात और है कि
उसमें शिउली की महक होती है
रात रानी की तरह ही
वो रात के अंधेरे में
अपनी भीनी-भीनी ख़ुशबू से पूरी बगिया महकाता है
लेकिन दिन के उजाले में
उसे खो जाना होता है
ज़िम्मेदारियों की पथरीली पगडंडी पर..
एक प्रेमिका
पति की बाँहों में
जब प्रेमी की बातें याद कर मुस्कुराती है
उसकी आत्मा को
शनैः शनैः एक अपराध बोध ग्रस लेता है..
जब कभी उफ़न जाता है दूध
जल जाती है सब्ज़ी
हो नहीं पाती बिटिया के कपड़ों पर इस्त्री
रह जाता है अधूरा उसका होमवर्क
या छूट जाती है
सुबह-सवेरे स्कूल की बस
सवालों के कटघरे में केवल प्रेम होता है…
वक़्त बीत जाने पर
पूरी होने वाली इच्छाएँ
केवल और केवल अपराध बोध ही देती हैं…
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