‘Arhata’, a poem by Ruchi
हम जब विचारशील हुईं तो
अन्यमनस्क दिखा वो समाज,
जो बुद्धिजीवियों को सराहता था।
हमने जब साहस दिखाया तो
भयभीत हुआ वो समाज,
जो साहस की डुगडुगी बजाता था।
हमने उस रीढ़ विहीन समाज को सम्बोधित किया,
सुनो, हम बौद्धिक, साहसिक, अन्य भी,
सकारात्मक तब्दीलीयाँ आचरण में लाएँगे।
तुम हमारा साहस देखने की हिम्मत तो करो,
हम बेहद पुष्ट वैचारिकता बिखेर देंगे,
हम एक दृढ़ स्तम्भ साबित होंगे लिजलिजे समाज का।
समाज ने स्वीकार किया ऐसी विदुषियों को,
और मापदण्ड के प्रपत्र पर
प्रथम अर्हता शारीरिक रखी।
यह भी पढ़ें:
पुनीत कुसुम की कविता ‘समाज’
रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी ‘समाज का शिकार’