है मोक्ष कहाँ है पाप पुण्य,
सब विधि विधान परिणाम शून्य।
जब जब भी रक्त बहेगा अब,
तब तब इन्सां कहेगा अब
तू कहाँ हुआ निस्तेज पड़ा,
अर्जुन अपना गांडीव उठा।
वो देख, हुआ है हाहाकार,
मानवता होती शर्मसार,
पहचान अपने गांडीव का मोल,
तू अपने यश को बहा या घोल,
अपना सब यश तू आज लूटा,
अर्जुन अपना गांडीव उठा।
फिर देख आज संग्राम हुआ,
नारी का फिर अपमान हुआ,
इस बार मौन तुम रहना मत,
सब देख देख सब सहना मत,
उठ कर तू क्षत्रिय धर्म निभा,
अर्जुन अपना गांडीव उठा।
तू मानव है अवतार नहीं,
ये राजाओं की सरकार नहीं,
क्यूँ लिए खड़ाऊ फिरता है,
क्या बची प्रचंड तलवार नहीं,
सूर्य सी ज्वाला आज जगा,
अर्जुन अपना गांडीव उठा।
नायक है, अपनी भूमिका पहचान,
शत्रु कांपे कुछ ऐसा ठान,
कर के मन में यशस्वी गान,
चढ़ा गांडीव पर तुरंत बाण,
शत्रु ताने हथियार खड़ा
अर्जुन अपना गांडीव उठा।
क्यों बैठा है निष्प्राण हुआ,
एक कदम नहीं क्या बढ़ सकता,
है किसकी प्रतीक्षा पार्थ तुझे,
बिन हरि नहीं क्या चल सकता।
तू मोह के परिंदे आज उड़ा,
अर्जुन अपना गांडीव उठा।