‘Ashraya’, Hindi Kavita by Rashmi Saxena
नमी खोखला कर देती है
भीतर तक,
दीवार की हो
काठ की हो अथवा
हो आत्मा की
मन की दीवार पर
दुःख द्वारा लगायी सेंध से
रिसता है धीमे-धीमे
कोई सोता
गलाता रहता
उम्र के आख़िरी छोर तक
साँस की कच्ची रस्सी
अपने अन्तिम
प्रयास में विफल
तोड़ देती
देह और आत्मा के
बीच का सेतु
बहाव नियति रहा
प्रकृति की
समय, द्रव्य, वायु, रक्त
बढ़ते रहे अपनी-अपनी गति से
ठहराव बेड़ी है
गति के पाँव की
आवश्यक है दुःखों को
सिर टिकाने का आश्रय,
अश्रुओं को बहाव का मार्ग
और मन के आँगन में
उम्मीद भरे शब्दों का
सूरज उतरना
ताकि नमी से हरे
हुए दुःख सूखकर
आँखों से झर जाएँ।
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