अस्तित्व रूपी महासागर की,
हर बूँद मेरी दुश्मन है
मैं ठहरा एक गोताखोर,
कल्पना की नदियों में
गोते खाता फिरता हूँ
और मुझे यह भी पता है
हर नदी आकर मिलेगी
इस महासागर में ही
जिससे भागता फिर रहा हूँ
जिसमें मर जाऊंगा एक दिन
मैं किसी नदी का हिस्सा बनके,
आ ही पहुँचा हूँ महासागर में
और बूँदों की परतों को
चीरकर पहुँच गया हूँ
अस्तित्व के हृदय तक भी
जहाँ उसने छिपा रखे हैं
लाखों सीपी रूपी अवसर
मैंने चुन ली है वो सीपी
जिसमें मोती रूपी तुम हो
तुमको लेकर जा रहा हूँ
वहाँ, जहाँ लेता हूँ श्वासें
इस अस्तित्व रूपी
महासागर के बाहर
क्या तुमको भा रहा है
अस्तित्व के परे ये नज़ारा
जहाँ हम गले तक डूबे हैं
अस्तित्व में ही
और हमारे मन के घर
अस्तित्व के बाहर हैं
मनमौजीपन का सूर्य
और धैर्य का चँद्रमा
एक साथ पिघल कर गिरने लगे हैं
अस्तित्व रूपी महासागर में
चलो अब हम दोनों भी लौट चलें
वापिस वहीं जहाँ पर हमारा
दम घूटने लगता है,
जहाँ पर हम जीवित हैं
चलो हम लौट चलें!