‘At The Middle Of Life’ – Friedrich Holderlin
अनुवाद: पुनीत कुसुम
पृथ्वी लटकती है नीचे की ओर
झील की तरफ, लदी- पीली
नाशपातियों और जंगली गुलाबों से।
सुन्दर राजहंसों, मदहोश
हो चुम्बनों में, तुम डुबाते हो अपना सिर
पवित्र और संयत पानी के भीतर।
लेकिन जब आएगी शीत,
मैं कहाँ ढूँढूँगा
फूलों को, धूप को,
और पृथ्वी की छायाओं को?
दीवारें खड़ी हैं
मौन और ठण्डी,
वात-दिग्दर्शक
खड़खड़ाता है हवा में!