कैसा होगा वह दुःख
जिसके आँसू
किसी बहर को निभाते
कोरों से फिसलेंगे
कौन-सा होगा वह सुख
जहाँ खिलखिलाहट के
प्रथम चरण की ग्यारहवीं गूँज
लघु हो जाएगी
किस से होगा वह प्रेम
वर्णों के निश्चित क्रम
में ही सिमटा हुआ
किस ओर से बहती है
समान यति पर ठहर
फिर-फिर हवा
क्योंकर लिख दूँ
छंद-बद्ध अहसास,
जीवन में कब निश्चित है
सुख और दुःख की मात्रा
हर पल आ चकित करता है
अतुकान्त क्षणिका-सा,
हर पल अपने में एक
नयी कविता है।