‘Ateet’, a poem by Sarika Pareek
मेरे अतीत के सारे दस्तावेज़
अंतर्देशीय लिफ़ाफ़े में लिखकर
चन्द्रमा को पोस्ट कर आयी,
मुझे अनुमान था
शशि की शीतलता से
हलाहल का प्रकोप
निश्चय ही क्षीण हो जाएगा।
अलबत्ता कुछ हुआ नहीं
चिट्ठी तारामण्डल की प्रदीक्षणा कर
पुनः लौटा दी गई,
शायद घर पर कोई नहीं होगा।
एक दफ़ा फिर
उस बेरंग लिफ़ाफ़े को
आग लगाकर
गुलेल से चाँद पर सटीक निशाना लगाया,
और एक दिन…
चाँद को ग्रहण लग गया।
खिड़की से देख रही थी
कालिख पुता हुआ चाँद
मुझे देखकर रोता था।
अब चिट्ठियों को पोस्ट करना बन्द कर दिया है
गिलौरी बनाकर निगल लेती हूँ
ग्रहण स्नान दान पूर्णिमा
आत्मसंवरण से
आत्मशुद्धि हेतु
स्वयं को ही समर्पित हैं।
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