और आज…
ऐसी ही एक और शाम
उन हवाओं को साथ लिए ढल गयी थी।
कहने को तो खोया नहीं था कुछ,
मैंने,
सिवाय उन हवाओं के,
वो हवाएं
जो शांत थीं अबतक,
हम दोनों के बीच।
वो हवाएं
जो शांत होकर भी बाँधे थीं,
मुझे तुमसे,
दूर होकर भी।
वही हवाएं खो दीं थीं
मैंने,
और कुछ नहीं खोया था
बस वो हवाएं,
वो शांत हवाएं
और तुम…