औरतो! रास्ता दिखाओ हमें
हम जिन्हें नफ़रतों के मौसम में
मौत की फ़स्ल बोना आती है
हम जिन्हें आँधियों के आँगन में
अपनी हर शम’अ खोना आती है
सरहदों, झाड़ियों, फ़सीलों से
अपनी उम्मीद बांधते हैं हम
मरना और मारना ज़रूरी है
सिर्फ़ इतना ही जानते हैं हम
औरतो! तुम मोहब्बतों की अमीन
दर्द ओ ग़म को समझने वाली हो
जन्नतों और जह्न्नमों से परे
सच्ची दुनिया बनाने वाली हो
ऐसी दुनिया कि जिसमें लोगों को
अपने हम-साये से मोहब्बत हो
ऐसी दुनिया जहाँ ख़ुदाओं को
सिर्फ़ इंसान की ज़रूरत हो
ऐसी दुनिया जो रहने लायक़ हो
ऐसी दुनिया जो ख़ूबसूरत हो
जंग और भूख से बहुत आगे
जहाँ जज़्बों की क़द्र होती हो
जहाँ उम्मीद रोज़ आँखों में
इक तमन्ना का बीज बोती हो
आदमी ने गढ़े हैं जो मज़हब
वो बहुत सख़्त और काले हैं
औरतो बस तुम्हारे दामन में
अब नयी सुबह के उजाले हैं…
(ज़ुल्म के ख़िलाफ़ नज़्में)
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