सृष्टि की अनछुई देह पर
पहला प्रेम स्पर्श ‘मौन’ का था
जो भाषा से असहमत था

फिर भी आदम और हव्वा-
जिन्हें शाब्दिक स्पर्श की कोई अनुभूति नहीं थी,
आमन्त्रण की सम्वाद भाषा भी
जिनकी आँखों के रजत पत्रों पर लिखी गयी थी,
मुस्कुराना जानते थे

वो जानते थे कि भाषा में निषिद्ध मौन
प्रेम में सहमति का अर्थ लिए था

सृष्टि के पृष्ठ तल पर उगे पेड़ों के रंग
भाषा की तरह चटकीले थे,
फल शब्दों की तरह आकर्षक

उन्होनें अर्थ का मूल्यांकन किए बिना
अपनी मर्ज़ी से
भाषाओं से शब्द उतारकर मानो सीख लिया था-
स्पर्श के सामने मौन की अवहेलना करना।

Book by Pranjali Awasthi: