‘Baalak Ka Geet’, a poem by Shyam Sundar Bharti

पुस्तक है मौन
और
अध्यापक शंकित है
बालक के चेहरे पर
प्रश्नचिह्न अंकित है

सुबह-सुबह खेत गया
खुरपी से खोदी कर
अभी-अभी आया है
धोरों की धरती में
पानी तो मिला नहीं
धूल से नहाया है
कुछ खाया-पिया नहीं
गृह-कार्य किया नहीं
मास्साब मारेंगे इससे आतंकित है
विभ्रम-सा
बालक कुछ सोच रहा

खेतों में बाप मरा
बापू का बाप मरा
उसका भी बाप मरा
मुझको भी उसी तरह
खेतों में-
जीते जी मरना है
कभी-कभी बालक के भेजे में जँचता
मास्साब से पूछूँ
पढ़कर क्या करना है

पुस्तक है मौन
और
अध्यापक शंकित है।

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