जब जन्म देती है एक माँ
कोई-कोई ही पूछता है-
“जच्चा-बच्चा ठीक हैं,
माँ का कितना ख़ून बहा,
क्या सर्जरी करनी पड़ी?”

वरना, कुशल-क्षेम
सिर्फ़ बच्चे की होती है,
जन्मदात्री की फ़िक्र
क्यूँ नहीं करते लोग
अन्यथा शल्य-चिकित्सा
झेले मरीज-सी?

लाज़मी है
नवजीवन का स्वागत,
होती ही ऐसी है कुछ
शिशु की मुस्कुराहट

अचरज यह
कि माँ की अनदेखी
और शिशु की मुस्कान के भक्तों में
सबसे चरम पर उन्मत्त, बावरी
स्वयं, माँ होती है!

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।