बड़ी बात नहीं होती दाल या सब्ज़ी में नमक भूल जाना
चाय में दो बार चीनी डालना, अदरक कूटकर भी डालना भूल जाना
बड़ी बात नहीं होती पति या प्रेमी का कहीं अफ़ेयर होना
भेद खुलने पर उनका छिनरझप्प खेलना

छोटी बहन का घर से भाग जाना
सामान्य ही होता है भाइयों का अपनी ही सहेली से फ़्लर्ट करना,
पिता का शराब पीकर बच्चों के सामने ही माँ को कमरे में खींचना
शान समझी गयी नए ग्राम-प्रधानों का घर से बाहर एक रखैल रखना
किसी नई विवाहिता के जलने पर दोषी सारी सामाजिक व्यवस्था को सबसे बड़ा मन बहलाव मिलना

बड़ी बात ये भी नहीं होती कि ज़्यादातर प्रगतिशीलों का अपनी ही जाति व सम्पन्नता में प्रेम विवाह होना
बड़ी बात नहीं होती, कवि, लेखक, पत्रकारों को साल-छः महीने में नया प्रेम होना
बड़ी बात नहीं होती सच कहने से मुँह चुराने को कलावाद कहना
या भरे पेट हाथ न देने वाले अक्सर भरे मन मिले
ये भी कि एक दिन उनकी जगह बस उनके क़िस्से मिले जो इंक़लाब करने आयी थीं लड़कियाँ
और जानने की एक जगह जाकर लगा पूर्ण मनुष्यता का मिथ हैं आत्मपीड़ा के गीत

बड़ी बात होती है जब अपने ही पंजों की ज़मीन पर किसी अपने जैसे का ही पंजा गड़ जाना
और दोनों का ही अबोध होना
दोनों का एक-दूसरे का कलेजा बकोटना
और दोनों का निर्दोष होना

जन्म से एक धारा में बहती दो ज़िन्दगियों में से एक का अन्य दिशा में मुड़ जाना व साथ बहती दूसरी धारा को पता भी नहीं चलना
कब वो अपना सबकुछ जो जन्म से अपने लिए निर्धारित लगता था जिसकी हर शय में हमारी साँसें होती हैं
एक दिन अचानक देखते है कि हम वहाँ होते ही नहीं
हमारा वहाँ होना एक मीठा-सा ज़हीन भ्रम था

बड़ी बात होती है दोस्त! दुनिया की आधी आबादी का एक भ्रम को जीवन समर्पित कर देना।

रूपम मिश्रा की कविता 'पिता के घर में मैं'

Recommended Book: