‘Badle Mein Sangeet’, a poem by Abhishek Ramashankar

हर रोज़ सुबह-सुबह
जब शहर से कहीं दूर मुण्डेर पर दाना चुग रहे होते हैं कबूतर और किसी गाँव की बस्ती के पिंजड़े में क़ैद तोता राम चख रहा होता है दिन की पहली हरी मिर्च

पड़ोस की छत पर नज़र आती है इक लड़की
भोर में दिख रहे शुक्र तारे की तरह
उसका दिखना कोई खगोलीय घटना नहीं लगती
पर है
शायद ही किसी को मालूम हो
सिवा सूरज के अगर सारे तारे ग़ायब हो गए तो हमें इस बात का पता चार साल बाद लगेगा

ये अस्ट्रानमी का दर्द है
जिसके भार की माप भौतिकी नहीं कर सकता
अनुभूतियाँ कितनी भारी हैं
ये पृथ्वी जानती है

जैसे आसमानी कैनवास पर स्ट्रोक लगाता हुआ चित्रकार ज़रूर दिखाता है सितारे, मोहल्ले में गश्त लगाता हुआ आशिक़ सर उठाकर देख ही लेता है अपनी प्रेयसी की खिड़की, नया-नया उभरता हुआ कवि उठा लेता है स्थापित कवियों की पंक्तियाँ, वैसे ही संगीतज्ञ कभी न कभी जाने-अनजाने चिड़ियों से चुरा ही लेता है संगीत

उसे मैं ऑर्निथोलॉजिस्ट की नज़र से देखता था
सुना है अच्छा गाती है
इशारों में उसे समझाने की कोशिश करूँगा : तुम सिरियस हो इस ब्रह्माण्ड का सबसे चमकता सितारा
बदले में माँग लूँगा संगीत जिससे बचा सकूँ बचे खुचे पक्षियों को…

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